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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ७२८ तत्त्वनिर्णयप्रासाद भावार्थ:-चारित्ररहितको बहुत पढ्या भी ज्ञान क्या करेगा? जैसे अंधेको लाख कोड दीवे भी प्रकाश नहीं कर सकते हैं. तथा कोई पुरुष रस्ता तो जानता है, परंतु चलता नहीं तो, क्या वो मजलसिर इच्छित ग्राम वा नगरको पहुंचेगा? कदापि नही. तथा जो, तरना जानता है, परंतु नदीमें हाथ पग नही हिलाता है तो, क्या वो पार हो जायगा ? नहीं डूब जायगा? ऐसेंही क्रियाहीन ज्ञानी, जानना. ॥ __ तथा॥"जहा खरोचंदनभारवाही इत्यादि"-जैसेंगदहे ऊपर चंदन लादा, परंतु गर्दभको चंदनका सुख नही, ऐसेंही क्रियाहीन ज्ञानवान्को सुगति नही. अन्योंने भी कहा है. ॥ क्रियैव फलदा पुंसां न ज्ञानं फलदं मतं ॥ यतः स्त्रीभक्षभोगज्ञो न ज्ञानात् सखितो भवेत् ॥१॥ भावार्थः-क्रियाही पुरुषोंको फलदात्री है, ज्ञान नही. क्योंकि, स्त्री और मोदकादिके ज्ञानसें कामी और भूखे, तृप्त नहीं होते हैं. यह तो क्षायोपशम चारित्रक्रियाकी अपेक्षा प्राधान्यपणा कहा. अब क्षायिकी क्रियापेक्षा कहते हैं. अर्हन् भगवान्को केवलज्ञान भी होगया है, तो भी, जबतक सर्वसंवररूप पूर्णचारित्र चतुर्दशगुणस्थान नही आता है, तबतक मुक्तिकी प्राप्ति नही होती है. इस वास्ते क्रियाहीप्रधान है.। इति क्रियानयमतम्॥ इन पूर्वोक्त दोनों नयोंको पृथक् २ एकांत माने तो, मिथ्यात्व है; और स्याद्वादसंयुक्त माने तो, सम्यग्दृष्ट है. ऐसेंही सर्वनयभेदमें निष्कर्ष जानना. __ अब द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिकका थोडासा विस्तार लिखते हैं. उनमें नैगमद्रव्यार्थिकनय, धर्मधर्मी द्रव्यपर्यायादि प्रधानअप्रधानादि गोचरकरके ग्रहण करी वस्तुके समूहार्थको कहता है. । १।। संग्रहद्रव्यार्थिकनय, अभेदरूपकरके वस्तुजातको एकीभावकरके ग्रहण करता है.। २। व्यवहारद्रव्यार्थिकनय, संग्रहने ग्रहण किया जो अर्थ, तिसके भेदरूपकरके जो वस्तुका व्यवहार करे, मो व्यवहार द्रव्यार्थिकनय है. । ३। For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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