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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ७०४ तत्त्वनिर्णयप्रासादसो तो जिनाज्ञासेंही माननेयोग्य है. क्योंकि, जे रागद्वेषसे रहित हैं, वे जिन, भगवान्, सर्वज्ञ, अन्यथा नही कहते हैं.। ५। प्रदेशत्व, क्षेत्रपणा, जो अविभागीपरमाणुपुद्गल जितना है.।६। चेतनत्व, जिससे वस्तुका अनुभव होता है। यतः॥ चैतन्यमनुभूतिः स्यात् सक्रियारूपमेव च ॥ क्रिया मनोवचःकायेष्वन्विता वर्त्तते ध्रुवम् ॥ १॥ भावार्थ:-चैतन्य जो है, सो अनुभूति है, और सक्रियारूप है, और क्रिया निश्चयकरके मनवचनकायामें अन्वित होके वर्ते है.। ७। अचेतनत्व, ज्ञानरहितवस्तु. । ८। मूर्त्तत्व, रूपरसगंधस्पर्शवाला.।९। अमूर्त्तत्व, रूपादिरहित. । १०॥ अथ द्रव्योंके विशेष गुण लिखते हैं. ज्ञान (१), दर्शन (२), सुख (३), वीर्य (४), स्पर्श (५), रस (६), गंध (७), वर्ण (८), गतिहेतुत्व (९), स्थितिहेतुत्व (१०), अवगाहनहेतुत्व (११), वर्त्तनाहेतुत्व (१२), चेतनत्व (१३), अचेतनत्व (१४), मूर्त्तत्व (१५), अमूर्त्तत्व (१६). येह सोलां विशेष गुण हैं. इनमेंसें जीवके १।२।३।४। १३ । १६ । येह ६ गुण है. पुद्गलके ५।६।७।८।१४। १५ । येह ६ गुण है. धर्मास्तिकायके ९।१४।१६। येह ३ गुण है. अधर्मास्थिकायके १० । १४ । १६ । येह ३ गुण है. आकाशास्तिकायके ११ ।१४।१६। येह ३ गुण है. कालके १२ ।१४।१६। येह ३ गुण है. अंतके जे चार गुण है, वे स्वजातिकी अपेक्षा तो सामान्य गुण है, और विजातिकी अपेक्षा विशेष गुण हैं. इनका अर्थ प्रकट है, इसवास्ते नही लिखा है. ___ अथ प्रसंगसे जीवादि द्रव्योंके स्वभाव लिखते हैं. अस्तिस्वभाव (१), नास्तिस्वभाव (२), नित्यस्वभाव (३), अनित्यस्वभाव (४), एकस्वभाव (५), अनेकस्वभाव (६), भेदस्वभाव (७), अभेदस्वभाव (८), भव्यस्वभाव (९), अभव्यस्वभाव (१०), परमस्वभाव (११), यह इग्यारें For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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