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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir तत्त्वनिर्णयप्रासादइन पूर्वोक्त लेखोंसे माधवरचित शंकरविजयका जो यह लेख है.। आसेतुरातुसाद्रिश्च बौदानां वृद्धबालकं । न हति यः स हंतव्यो नृत्यानित्यवदन्नृपाः॥ भावार्थः-सेतुबंधरामश्वरसे लेकर, हिमालयतक, बौद्धोंके वृद्धसे लेकर बालकपर्यंतको, जो न हणे, (न मारे) उसको मार देना; ऐसें अपने नोकरोंप्रति राजे लोक कथन करते हुए. सो मिथ्या सिद्ध होता है. _ और माधवने जहां बौद्ध लिखा है, वहां भी, आनंदगिरीने जैन लिखा है. माधवकृत विजयके सर्ग ७ के पृष्ट ११-१२ में, और आनंदगिरिकृत विजयके पृष्ट २३६ में देखो. क्या जाने, आनंदगिरिको जैनी. योंने बहुत सताया होगा, इसवास्ने, बौद्धोंकी जगे भी, जैनमतीही लिख दिये !!! परंतु हमारी समझमूजव तो, आनंदगिरिको जैन और बौद्धमतके पृथक् २ जाननेकी भी, बुद्धि नहीं थी. और शंकरने, जैनमतोपरि कुमारिलवत्, जुलम गुजारा, ऐसा तो, दोनोंही विजयग्रंथोंमें नहीं लिखा है. - ऐसे पूर्वोक्त स्वरूपवाले शंकरखामीने, वेदांतमतके व्याससूत्रोपरि, भाष्य रचा है. उसमें व्यासजीके कथनानुसार, जैनमतका खंडन, लिखा है. सो खंडन खंडनपूर्वक, आगेके स्तंभमें लिखेंगे. । इत्यलम् । इत्याचार्यश्रीमद्विजयानंदसूरिविरचिते तत्त्वनिर्णयप्रासादे शंकरस्वामिस्वरूपवर्णनोनामपंचत्रिंशःस्तम्भः॥३५॥ ॥ अथ पदात्रिंशस्तम्भारम्भः॥ पंचत्रिंश (३५) स्तम्भमें शंकरस्वामीका स्वरूप कथन किया, अथ इस छत्तीस (३६) मे स्तम्भमें शंकरस्वामीने जैसे जैनमतकी सप्तभंगीका खंडन किया है सो, और उसके खंडनका खंडन लिखते हैं. तहां प्रथम जैनमतवाले जैसा सप्तभंगीका स्वरूप मानते हैं, तैसा भाषामें लिखते हैं, जिससे वाचकवर्गको मालुम हो जायगा कि, शंकरस्वामीने, For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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