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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir तत्वनिर्णयप्रासाद( DR. SIR WILLIAM HUNTER, C. I. E... LL. HD. ) ने लिखा है; उसका तरजूमा गुजराती भाषामें सरकारकी तरफसे हुआ है. उसके सन १८८६ के छपे पुस्तकके पृष्ठ १०९ में लिखा है कि, ईसवी सन ८०० में विहारका वासी कुमारिल ब्राह्मण हुआ, और उक्त सन ९०० में, शंकरस्वामी हुआ लिखा है. और पृष्ठ १०३ में लिखा है कि, ईसवी सनके ८०० में सैकेमें कुमारिलने उपदेश करनेका प्रारंभ किया, वेदानुसार पुराना मत यह है कि, सगुणस्रष्टा, और ईश्वर है. ऐसे मतका उसने बोध किया. बौद्धधर्ममें सगुण ईश्वर नही था; पीछेकी एक कथामें ऐसा लिखा है कि, कुमारिलने बौद्धमतके विरुद्ध उपदेश किया, इतनाही नही, बलकि, उनके ऊपर बहुत जुलम करनेके वास्ते किसी दक्षिण हिंदके राजाके मनमें ऐसा निश्चय करवाया कि, उस राजाने अपने सेवकोंको आज्ञा दी कि, बौद्धमत माननेवाले वृद्ध, और बालकपर्यंत, सेतुबंधरामेश्वरसें लेके हिमालयपर्यंत, जहां होवे, तहां सर्वको मार दो, और जो न मारे, उसको भी मार दो. तथापि, हिमालयसें लेके कन्याकुमारीतक, जुलम करनेकी सत्ता जिसके हाथमें होवे, सो उक्त काम कर सके; परंतु ऐसा भारी राजा, उसकालमें हिंदमें नही था. हां, दक्षिणहिंदके बहुतसें राजाओंमेंसे किसीएक राजाने अपने राज्यमें ऐसा जुलम गुजारा होवे तो, होवे. परंतु यह तो, एक छोटीसी बातको बडी करके दिखलाइ है. तथा प्रो० मणिलाल नभुभाई द्विवेदी, अपने बनाये सिद्धांतसारमें ऐसे लिखते हैं-सातमे आठमे सैकेमें शंकराचार्य कुमारिल विगेरेने, इस (बौद्ध) धर्मके सामने बहुत प्रयत्न किया है. कदापि किसी स्थलमें लडाई झगडा भी हुआ होगा, तो भी बौद्धधर्मको ब्राह्मणोंने, राजाओंके पास निकलवा दिये और बौद्धधर्मके अनुयायी (माननेवालों) को कतल करवा दिये यह वात तो, केवल पुराणकल्पनाही लगती है. [ स्वर्गवासी पंडित भगवानलालजीका भी यही मत था. ] तो बौद्धधर्म हिंदुस्थानमेंसें कैसे लोप हो गया ? तिसवास्ते उस धर्मका बंधारणही जवाबदार है. प्रथमसेंही इस धर्मकी नाति बहुत सखत थी, इसमें साधु होके रहना बहुत मुश्किल था; For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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