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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir तत्त्वनिर्णयप्रासादव्यभिचारका कलंक उत्पन्न होवेगा. क्योंकि, जब ईश्वरीय शक्तिसें उनका उत्पन्न होना मानते हैं तो, क्या ईश्वर स्त्रीके गर्भविना अपने आपको मनुष्यरूप नही बना सकता था ? इसवास्ते प्रत्यक्ष अनुमान आतागमसे विरुद्ध ऐसा लेख, प्रेक्षावान् तो कोई भी नही लिख सकता है. यद्यपि परमाप्तागममें ऐसा लेख है कि, पांच कारणोंसें, स्त्री, पुरुषके संगमविना भी, गर्भ धारण कर सकती है. वे कारण यह हैं. ॥ “ ॥ पंचहिं ठाणेहिं इत्थी पुरिसेण सद्धिं असंवसमाणीवि गप्भं धरेजा तंजहा दुब्बियडा दुन्निसन्ना सुक्कपोग्गले अहिडेजा ॥ १॥ सुक्कपोग्गलसंसिढे से वत्थे अंतो जोणीए अणुपविसेज्जा ॥२॥ सयं वा से सक्कपोग्गले अणुपविसेज्जा ॥३॥ परो वा से सुकपोग्गले अणुपविसेज्जा ॥४॥ सीओदगवियडेण वा से आयममाणीए सुकपोग्गले अणुपविसेज्जा ॥५॥ भाषार्थः-वस्त्ररहित विरूपताकरके गुह्यप्रदेशकरके कथंचित् पुरुषनिसृष्ट शुक्र (वीर्य) पुद्गलवाले भूमिपट्टादिक आसनको आक्रमण करके बैठी हुइ, तिस आसनपर स्थित हुए पुरुषनिसृष्ट शुक्रपुद्गलोंको कथंचित् योनिसें आकर्षण करके ग्रहण करे. ॥१॥ तथा शुक्रपुद्गलसें लिबडा (भीजा) हुआ वस्त्र, उपलक्षणसें तथाविध और भी केशादि, स्त्रिकी योनिमें प्रवेश करे, अथवा अनजानपने तथाविध वस्त्रको पहिना हुआ योनिमें प्रवेश करे, और शुक्रपुद्गलको ग्रहण करे. ॥२॥ तथा आपही पुत्रार्थिनी होनेसें और शीतलरक्षकत्व होनेसें शुक्रपुद्गलोंको योनिमें प्रवेश करवावे. ॥३॥ तथा पर, सासुआदि पुत्रकेवास्ते वहुके गुह्यप्रदेशमें वीर्यपुद्गलोंको प्रवेश करवावे. ॥ ४॥ पल्वल द्रहप्रमुखगत जो शीतल जल, तिसमें स्नान करती हुइ स्त्रीकी योनिमें कथंचित् पूर्वपतित उदकमध्यवर्ती शुक्रपुद्गल प्रवेश करे. ॥ ५॥ इन पांच कारणोंसें स्त्री पुरुषसंगमविना भी गर्भधारण कर सकती है. For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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