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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir पंचत्रिंशःस्तम्भः ९. चारित्रार्य-इनके भेद श्रीप्रज्ञापनासूत्र में अनेक प्रकारके करे हैं. परंतु सामान्य प्रकारसें जो आहंसा १, अनृत २, अस्तेय ३, ब्रह्मचर्य ४, अकिंचिन्य ५, इन पांचों महाव्रतोंका पालक होवे, सो चारित्रार्य जानना.॥९॥ येह नवभेद आर्योंके हैं. यह आर्यपद जैनमतके शास्त्रोंमें हजारों जगे उच्चारनेमें आताहै. जैसें ॥ ___“॥ अज्जसुहम्मे अजजंबू अजपप्भव इत्यादि॥" एक कल्पाध्ययनमेंही सैंकडों जगे उच्चार हैं. और जैनमतकी साध्वीयोंका नाम भी, आर्या है; इसवास्ते यह आर्य शब्द श्रेष्ठताका वाचक है. सांप्रतिकालमें दयानंदिये ( दयानंदमतानुयायी) भी, अपने आपको आर्य समाजी कहलाते हैं. परंतु जो अर्थ, आर्यपदका हम ऊपर लिख आए हैं, सो जिसमें घटे सोही आर्यपदवाच्य है, अन्य नहीं है. । इति संक्षेपतः कतिपय शंकानिराकरणं समाप्तम् ॥ इत्याचार्यश्रीमद्विजयानंदसूरिविरचिते तत्त्वनिर्ण यप्रासादे चतुस्त्रिंशः स्तम्भः ॥ ३४ ॥ ॥ अथ पंचत्रिंशस्तम्भारम्भः॥ विदित होवे कि, व्यास सूत्रोंमें जैनमतके कहे तत्वोंका तीन सूत्रोंमें खंडन किया है, उन सूत्रोंपर शंकरस्वामीने भाष्य रचके तिसमें विस्तारसे पूर्वोक्त तत्वोंका खंडन लिखा है. बहुतसें जैनमती यह भी नही जानते हैं कि, शंकरस्वामी कौन थे ? कब हुए हैं ? और उनने हमारे मतका किस रीतिसें खंडन किया है ? और बहुत ब्राह्मण लोक शंकरस्वामीने जैनीयोंके बेडे जहाज भरवाके डुबवा दिये थे, इत्यादि अनेक मिथ्या वातें कर रहे हैं, वे सर्व मालुम हो जावेंगी. इसवास्ते इस पंचत्रिंश (३५) स्तंभमें हम शंकरस्वामीकी उत्पत्ति, शंकरस्वामीके शिष्य अनंतानंदगिरिकृत शंकरविजय, और माधवाचार्यकृत दूसरी शंकरविजय ग्रंथानुसार लिखते हैं. और जिन जैनमतके तत्वोंका खंडन जिस. For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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