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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir रामजी" के पास आकर प्रश्नोचर करने लगे. प्रश्नोंका जवाब पूरा पूरा मिलनेसें कितनेही श्रावक तो, उसी वखत शुद्ध मार्गमें आगये, और कितनेकने यह दावा किया कि, " हम ढुंढक साधु ओंको पूछके, निर्णय कर लेवेंगे, पीछे जो हमको सत्य सत्य मालुम होवेगा, अंगिकार करलेवेंगे." ऐसें कहकर, पंजुराम वगैरह चार पांच श्रावक, “पटियाला शहेरमें, " रामबक्षजी के पास गये, और कितनेही प्रश्न किये; परंतु एक बातका भी ठीक ठीक उत्तर न मिला. अंतमें रामबक्षजीने गुस्सेमें आकर कहा कि, “ तुमारे अंदर अज्ञान बढगया है. यदि तुमको हमारे ऊपर निश्चय है तो, जैसे हम कहते, और करते हैं, वैसही करे जाओ, नहीं तो तुमारी मरजी. आवश्यक जो हमारे पास है, सोही है, तुमारे वास्ते हम कोई नया अवश्यक बनावे क्या ? ११ तब उन श्रावकोंने कहा कि, “महाराजजी साहिब! आप गुस्सा न करें. क्योंकि, “श्रीआचारांग" वगैरह सूत्र प्राकृत वाणीमें है तो आवश्यक भी, प्राकृतवाणीमेंही होना चाहिये, और आपके पास जो है, सो गुजराती वगैरह भाषाओंसे मिश्रित खीचडी हुआ हुआहै. इसको सच्चा किसतरह माना जावे? तब रामबक्षजीने कहा, “तुम बहोत झगडा मत करो. तुमारी श्रद्धा तुमारे पास, और हमारी श्रद्धा हमारे पास.” यह सुनकर उनको निश्चय होगया कि, जो कुच्छ श्रीआत्मारामजी बताते हैं, सब सत्य है. और ढुंढक साधुओका कहना, असत्य है. तब रामबक्षजीके पासही ढुंढकमतको त्यागन करके जिरे चले गये; और सब वृत्तांत, जिरेके लोगोंको कह सुनाया. सुनकर सबनेही श्रीआत्मारामजीका कहना सत्य मानकर, शुद्ध श्रद्धान आंगिकार करलिया. इसवखत जीवणमल्लजी श्रीआत्मारामजीके ढुंढक अवस्थाके गुरु भी, जिरामें आपहुंचे, उनको भी सत्य धर्मका कुच्छ असर होगयाथा. परंतु " फिरोजीपुर " जानेसे वहांके ढुंढीयोंके बहकानेसे बहक गये. जिरेमें श्रीआत्मारामजीने कल्याणजी साधुको समझाया, और सन्मार्ग अंगिकार कराया. यह बात सुनकर पूज्य अमरसिंघने हुकुमचंदको, कल्याणजीके साथ पत्र भेजकर" भदौड" गाममें बुलाया. और गुस्से होकर कहा कि "तूं मेराही घर पुटने लगाहै ? तूं कल्याणजीको लेकर क्यौं जिरेको गयाथा ?' तब हुकुमचंदजीने शांति करके कहा कि, “स्वामीजी ? मैं भूलगया. मेरा गुन्हा माफ करें. आगेको ऐसा नकरूंगा.” यह नम्रता करनेका सबब यह था कि हुकुमचंदजी अच्छी तरह जान गयेथे कि, ढुंढकमत मनःकल्पित है. परंतु अबतक हमको इस घरमें रहकर बहोत कुच्छ कार्य करनेके हैं, इसवास्ते धीरजसें जो बने सो अच्छा है--सत्य है--सहज पक्के सो मीठा हो. इसबखत विश्नचंदजी भी, वहां आये हुयेथे. उनोंने भी पूज्यजीको समझायके शांत करे और श्रीविश्नचंदजी बगैरह विहारकी तैयारी करने लगे. तब अमरासंघजीने कहा, “ रस्तेमें जिरेसे विहार करके जगरांवामें आकर आत्माराम बैठाहै, उसको मिलनेका नियम करो. 7 तब श्रीविश्नचंदजीने कहा, "हम नहीं मिलेंगे ." ऐसा कहकर विहार करके जगरांवामें आये, और श्रीआत्मारामजीको मालुम न होवे ऐसे पृथक् मकानमें जा उतरे. परंतु क्या चांद निकला छी. पा रहता है ? एक ओसवालने जाके श्रीआत्मारामजीको मालुम किया.कि, “श्रीविश्नचंदजी आये हैं, और फलाने मकानमें उतरे हैं. ” यह सुनतेही श्रीआत्मारामजी बडे खुश हुवे, और विश्नचंदजी जिस मकानमें उतरे थे, वहां जाकर कहने लगे कि, “मिलनेका नियम तु For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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