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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir तत्त्वनिर्णयप्रासाद. केवलज्ञानरूप दीपकके तेजसें जीवाजीवादितत्वोंका प्रकाश होता है; अर्थात् वो प्राणी, भावांधकार अज्ञानको दूर करके खात्मप्रकाश केवलज्ञानको प्राप्त करता है, जिसके प्रभावसे सर्व तीनलोकके चराचर पदाऑको आपही देखता है. । प्रभुके आगे धूपको प्रज्वलीत करके जो प्राणी धूपपूजा करता है, सो प्राणी धूपपूजाके प्रभावसें चंद्रमासमान अति उज्ज्वल कीर्तिकरके धवलित करा है जगत्रय जिसने, ऐसा पुरुष होता है; और फलपूजाके प्रभावसे प्राणी मोक्षके सुखफलको प्राप्त होता है. । जो प्राणी प्रभुके मंदिरमें घंट देता है, सो प्राणी तिसके फलसें घंटोंके शब्दोंकरके व्याप्त ऐसें प्रधान देवविमानोंमें सुंदर अप्सरायोंके वृंदोंमें देवतायोंके समूहसहित क्रीडा करता है. । छत्रदानकरके अर्थात् भगवान्के ऊपरि छत्र चढावनेसें प्राणी शत्रुरहित एकछत्र पृथ्वीका राज्य प्राप्त करता है; और जो भगवान्को चामर करता है, तिसके प्रभावसे उस प्राणिको राजाआदि चामर करते हैं. यहां चामर चमरीगायके केशोंका जाणना, अन्य नही. क्योंकि, भगवज्जिनसेनाचार्यने श्रीआदिपुराणमें चमरीगायके केशोंकेही चामर लिखे हैं. ___ "स्वकीर्तिनिर्मलैर्वीज्यमानं चमरिजन्मभिः॥” इतिवचनात्॥ तथा श्रीजिनेंद्रको जलादिपंचामृतकरके अभिषेक करनेके फलसें प्राणी मेरुपर्वतके ऊपरि देवता, और इंद्रादिकोंकरके भक्तिपूर्वक क्षीरसागरके जलकरके करे हुए अभिषेकको प्राप्त करता है. । भगवान्के मंदिरके ऊपरि विजयपताका (ध्वजा) चढावनेसें प्राणी संग्रामादिकोंके विषे विजयकों प्राप्त करता है, षट्खंडस्वामी-चक्रवर्ती होता है, निःप्रतिपक्ष (शत्रुरहित) होता है, और यशस्वी होता है. । बहुता क्या कहना ? तीनों लोकोंमें जो जो सुख है, सो सर्व पूजाके फलसें प्राप्त होता है; इसमें संदेह नहीं है.॥ इतिपूजाफलम्-॥ तेरापंथी दिगंबरी:-तुमने कहा सो तो सत्य है, परंतु शास्त्रोंमें जलपूजाविषे तो गंगाजल, अक्षतपूजामें मोतीके अक्षत, पुष्पपूजामें कल्पवृक्षके पुष्प, और दीपकपूजामें रत्नके दीपकादि लिखा है, सो यह For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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