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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ६०४ तत्त्वनिर्णयप्रासाद___ और जिनप्रतिमा, जिनमंदिरके बनवानेका फल दिगंबराचार्योनेही ऐसें कहा है. तथाहि पूजाप्रकरणे ॥ कुंथुभरिदलमत्ते जिणभवणे जो ठवेइ जिणपडिमं ॥ सरिसवमेत्तंपि लहइ सो णरो तित्थयरपुण्णं ॥१॥ जो पुण जिणिंदभवणं समुण्णयं परिहितोरणसमग्गं । णिम्मावइ तस्स फलं को सका वग्णिउं सयलं ॥२॥ भावार्थः-कुंथुभरि (कुटुंबर) वृक्षके पत्रप्रमाण जिनभवनमें सरसवमात्र जिनप्रतिमाको जो स्थापन करे, सो भव्यप्राणी तीर्थंकर पूण्यप्रकृ. तिको प्राप्त करे हैं.। और जो प्राणी भावोंसहित बडा ऊंचा शिखरबंध प्रदक्षिणा तोरणसहित जिनभवन बनवावे है, तिसके संपूर्ण फलका वर्णन करनेको कौन समर्थ है ? अपितु कोइ नही. ॥ तथा पूजाके फलका भी वर्णन पृथक् २ दिगंबराचार्योंने कहा है. तथाहि षविधपूजाप्रकरणे॥ जलधाराणिक्खवणे पावमलं सोहणं हवे णियमा ॥ चंदणलेवेण णरो जायइ सोहग्गसंपण्णो ॥१॥ जायइ अक्खयणिहिरयणसामिओ अक्खएहि अक्खोहो॥ अक्खीणलद्धिजुत्तो अक्खयसोक्वं च पावेइ ॥२॥ कुसुमहिं कुसेसयवयणतरुणिजणणयणकुसुमवरमाला ॥ वलयेणच्चिय देहो जायइ कुसुमाउहो चेव ॥३॥ जायइ णिविजदाणेण सत्तिगो कंतितेयसंपण्णो ॥ लावण्णजलहिवेलातरंगसंपावीयसरीरो॥४॥ दीवहिं दीविया सेसजीवदवाइं तच्च सम्पावो ।। सम्पावजणियकेवलपदीवतेएण होइ गरो ॥५॥ .... For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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