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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir तत्त्वनिर्णयप्रासादउत्तरः-हमारे तो पूर्वधर श्रीसंघदासगणिक्षमाश्रमणजीने, व्यवहारसूत्रकी भाष्यमें कहा है कि, जिनराजके बिंबको वहुत आभरणोंसें शृंगार करना; जिसको देखके भव्यजनोंके चित्तमें बहुत आनंद उत्पन्न होवे. और तत्त्वार्थसूत्रादि पांचसौ ( ५०० ) ग्रंथके कर्ता श्रीउमास्वातिवाचकने, पूजापटलनामा ग्रंथमें २१ प्रकारकी जिनराजकी पूजा कही है; जिसमें भी आभरणपूजा कही है. तथा अन्य आगमोमें भी, आभरण चडानेका पाठ है. इसवास्ते चडाते हैं. परंतु तुमारे मतके घत्ताबंध हरिवंशपुराणमें ऐसा पाठ है. । __ यतः॥ “॥एण्हविऊण खीरसायरजलेण भूसिओ आहरणउज्जलेण॥" इत्यादि भाषार्थ:-क्षीरसारगके जलकरके स्नान करवाके देदीप्यमान आभरणोंकरके भूषित करा । इत्यादि-तो फिर तुम, प्रतिमाको आभरण क्यों नही पहिराते हो? दिगंबरः-ऊपरके तीन उत्तरमें जो हमारे ग्रंथोंकी साक्षी दिनी है, सो तो ठीक है; परंतु हम तो ग्रंथोक्तवातें जन्मकल्याणककी अपेक्षा मानते हैं. श्वेतांबरः-तुम जो भगवंतको नित्य स्नान कराते हो, और यात्रा करके शुद्ध जल ल्याके तिस यात्राजलसें स्नान कराते हो, सो किस कल्याणककी अपेक्षा कराते हो ? जेकर कहोगे जन्मकल्याणककी अपेक्षा कराते हैं, तब तो, साथही वस्त्राभरण कटक कुंडल मुकुटादि भी पहिराने चाहीये, ग्रंथोक्त होनेसें. जेकर कहोगे, योगावस्थाकी अपेक्षा कराते हैं, तब तो, पानीसें स्नान करानेसें तुम लोक अपराधी ठहरोगे. तथा जब तुम लोक भगवंतके बिंबको रथ, वा पालकी, वा तामझाममें आरोहण करते हो, तब कौनसी अवस्था मानते हो ? जेकर कहोगे जन्मकल्याणक, वा, गृहस्थावस्था मानके करते हैं, तब तो, वस्त्राभरणकटककुंडलमुकुटादि भी पहिराने चाहिये. जेकर कहोगे, योगावस्थाकी अपेक्षा करते हैं, तब तो, बहुत अनुचित काम करते हो !! क्योंकि, भगवंत तो योग लीयां For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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