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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir त्रयस्त्रिंशःस्तम्भः। दिगंबरः-पुरुषविषे स्मारणादि अकर्तृत्व यहां विवक्षित है, नतु स्मारणादि अकर्तृत्वमात्र; और नहीं, स्त्रियां कदापि पुरुषोंको स्मारणादि करती हैं. .. श्वेतांबरः-तब तो 'पुरुषविषे' ऐसें कहना योग्य था. यदि ऐसें कहो, तो भी असिद्धता दोष है. क्योंकि, कितनीक सर्वज्ञके आगमके रहस्यकरके वासित है सप्तधातु जिनोंकी, ऐसी स्त्रियोंको किसी जगें तथाविध अवसरमें स्खलायमान वृत्तिवाले साधुको स्मारणादिका करना, विरोध नहीं है. ॥ ४ ॥ अथ अमहर्द्धिक होनेसें स्त्रियां पुरुषोंसें हीन हैं. यह पक्ष भी ठीक नहीं है. क्या आध्यात्मिक समृद्धिकी अपेक्षा अमहर्द्धिकत्व है, वा बाह्यसमृद्धिकी अपेक्षा ? प्रथम पक्ष तो नही. क्योंकि, आध्यात्मिकसमृद्धि, सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रय है; तिसका तो, स्त्रियों में भी सद्भाव है. बाह्यसमृद्धिवाला पक्ष भी ठीक नही. क्योंकि, तीर्थंकरकी ऋद्धिकी अपेक्षा गणधरादि, और चक्रधरादिकी अपेक्षा अन्य क्षत्रियादि, सर्व अमहर्द्धिक हैं; तब तो, गणधरादिकोंको भी मोक्ष न होना चाहिये. दिगंबरः-पुरुषवर्गकी तीर्थंकररूप जो महती समृद्धि है, सो स्त्रियोंमें नहीं है; इसवास्ते स्त्रियोंको अहमद्धिकपणेकी हम विवक्षा करते हैं. श्वेतांबरः-इस तुह्मारे कथनमें भी असिद्धता दोष है. कितनीक परम पुण्यपात्रभूत स्त्रियोंको भी, तीर्थकरत्वके अविरोधसें; तिसके विरोधसाधक किसी भी प्रमाणके अभावसें, तुम्हारे कहे अनुमानको अद्यापि विवादास्पद होनेसें, और अनुमानांतरके अभावसें. ॥ ५॥ मायादि प्रकर्षवत्त्वसें मोक्ष नही. यह भी कथन श्रेष्ठ नही है. मायादि प्रकर्षवत्त्वको, स्त्रीपुरुष दोनोंमें तुल्य देखनेसें, और आगममें सुननेसें; तथा नारदादि चरमशरीरीको भी मायादि प्रकर्षवत्त्व सुनते हैं. तिसवास्ते स्त्रियोंको, पुरुषोंसें हीनत्व होनेसें निर्वाण नहीं है, यह कहना अच्छा नहीं है. ॥ ६॥ For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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