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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir तत्त्वनिर्णयप्रासादउत्तर:--प्रथम तो यह लेखही मिथ्या है. क्योंकि, हमारे (श्वेतांबरोंके ) शास्त्र में ऐसा लेखही नहीं है कि,हमारे मतके चौरासी आगम है. परंतु श्रीनंदिसूत्र में द्वादशांगोंसे पृथक् चौदह हजार (१४०००) प्रकीर्ण शास्त्र लिखे हैं. तिनमेंसे कालदोषकरके जितने व्यवच्छेद हो गए हैं, वे तो गए, जो बाकी शेष रहे हैं, तिन सर्वको हम मानते हैं. परंतु हमारे मतमें एवकार नही है कि, चौरासी, वा पैंतालीस, वा बत्तीसही मानने. जे मानते हैं, वे सर्व, मिथ्यादृष्टि, और जिनमतसें बाह्य हैं. और जो गच्छोंके भेदका दूषण दीया है, सो तो तुम्हारे मतमें भी समान है.तुम्हारे आचर्यानेही दिगंबरमतमें अनेक गच्छोंके भेद लिखे हैं, जिनमेंसें कितनेक ऊपर लिख आए हैं. परंतु इतना विशेष है कि, श्वेतांबरोंमें जितने गच्छ, वा मत कहे जाते हैं, वे सर्व, स्त्रीको मोक्ष १, केवलीको कबलाहार २, स्त्री तीर्थकर ३, गोसालेने तेजोलेश्या चलाई ४, केवलीको रोग ५, साधुको चतुदशादि उपकरण ६, इत्यादि सर्व बातें मानते हैं. ___ और यह जो सर्वार्थसिद्धिवालेने लिखा है कि “तिनका ( वर्द्धमान स्वामीको ) केवल उपजे पीछे गोसालानाम गरूड्याळू दिखा दइ" सो यह लेख भी, असत्य है. क्योंकि, गोसाला गरूड्या नहीं था, किंतु मंखलीपुत्र था. तथा भगवानने तिसको दीक्षा नहीं दीनी थी, किंतु उसने आपही शिर मुंडन करवायके शिष्यबुद्धि धारण करी थी. वास्तविकमें वो शिष्य नहीं था. क्योंकि, श्वेतांबरोंके शास्त्रों में इसको शिष्याभास लिखा है. तथा यह वृत्तांत भगवान् जब छद्मस्थ अवस्थामें विचरते थे, तिस वखतका है; परंतु केवलज्ञान हुए पीछेका नहीं है. और जो ढूंढियोंकी बाबत लिखा है, सो भी मिथ्या है. क्योंकि, ढूंढकपंथ जैन श्वेतांबरमतमें नहीं है. यह तो, सन्मूछिमपंथ है. संवत् १७०९ में सुरतके वासी लवजीने निकाला है. जैसे दिगबरोंमें तेरापंथी, गुमानपंथी, आदि. तथा कितनेक विना गुरुके नग्न दिगंबर मुन, भोले श्रावगीयांसें धन लेनेकेवास्ते बने फिरते हैं, और क्षुल्लक बने फिरते हैं, ऐसेंही श्वेतांवर मतके नामको कलंकित करनेवाला, आचार विचारसें भ्रष्ट, For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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