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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir त्रयस्त्रिंशः स्तम्भः । ५५३ पीडित साधु होय तो मद्यमांससहितका आहार करे तो दोष नही, इत्यादि लिखा तथा तिनकी साधककल्पित कथा बनाय लिखी. एक साधुको मोदकका भोजन करताही आत्मनिंदा करी तब केवलज्ञान उपज्या, एक कन्याको उपाश्रय में बुहारी देतेही केवलज्ञान उपज्या, एक साधु रोगी गुरुको कांधे लेचल्या आखडता चाल्या गुरु लाठीकी दई तब आत्मनिंदा करी ताको केवलज्ञान उपज्या तब गुरु वाके पग पड्या; मरुदेवीको हस्तीपरी चढेही केवलज्ञान उपज्या, इत्यादिक विरुद्ध कथा, तथा श्रीवर्द्धमानस्वामी ब्राह्मणके गर्भ में आये, तब इंद्र वहांते कादि सिद्धार्थ राजाकी राणीके गर्भ में थापे, तथा तिनकं केवल उपजे पीछे गोसालानाम गरूड्याकुं दिख्या दइ, सो वाने तप बहुत किया, वाके ज्ञान वध्या, रिद्ध फुरी, तब भगवानसूं वाद किया, तब बादमें हास्या, सो भगवानसूं कषाय करि तेजूलेश्या चलाइ सो भगवानके पेचसका रोग हुवा, तब भगवान के खेद बहुत हुवा, तब साधानें कहीं एक राजाकी राणी बिलाके निमित्त कूकडा कबूतर मारि भुतलस्या है, सो वै महारेताई ल्यावो, तब यह रोग मिट जासी, तब एक साधु वह ल्याया भगवान खाया, तब रोग मिट्या; इत्यादि अनेक कल्पित कथा लिखी. अर स्वेतवस्त्र पात्रा दंडआदि भेषधारी स्वतंबर कहाये, पीछे तिनकी संप्रदाय में केइ समझवार भये, तिननें विचारी ऐसे विरुद्ध कथनते लोक प्रमाण करसी नही, तब तिनके साधनेकं प्रमाणनयकी युक्ति बणाय नयविवक्षा खडी करी. ऐसे जैसें तैसें साधी, तथापि कहांता साथै, तब केइ संप्रदायी तिन सूत्रनमें अत्यंत विरुद्ध देखे, तिनकूं तो अप्रमाण ठहराय गोपि कीये, कमि राखें, तिनमैं भी केइकने पैंतालीस राखे, केइकने बत्तीस राधे, ऐसे परस्पर विरोध वध्या तब अनेक गच्छ भये, सो अबताई प्रसिद्ध है. इनिके आचार विचारका कछू ठिकाणा नही. इनहीमें ढूंढिये भयें है, तिने निपटही निंद्य आचरण धारया है, सो कालदोष है, किछू अचिरज नांही, जैनमतकी गोणता इसकालमें होगी है ताके निमित्त ऐसे वणे. श्वेतांबरः - यह सर्वार्थसिद्धिभाषाटीका में जो लेख लिखा है, प्रायः द्वेषबुद्धिसे लिखा मालुम होता है. जैसें देवसेनाचार्य दर्शनसार में लिखते ७० For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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