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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ५१२ तत्त्वनिर्णयप्रासादस्मृति, याज्ञवल्क्यस्मृति, शुक्लयजुर्वेद, शतपथब्राह्मणादिकोंमें जैनमतका नाम नहीं लिखा; ऐसेंही अन्यवेदोंके बनानेके समयमें भी वेदोंमें जैनमतका नाम विद्यमान था, तो भी नहीं लिखा. इससे जैनमत, क्या नवीन सिद्ध हो सक्ता है? कदापि नही. तथा व्यासजीसे पहिले तो चारों वेदोंकी संहितायोंही नही थी, किंतु ऋषियोंपास यजन याजन करनेकी हिंसक श्रुतियां थी; वे श्रुतियां, और ऋग्वेदके दश (१०) मंडल, जिन जिन ऋषियोंने श्रुतियां रचि हैं, और जिन २ ऋषियोंने तिन श्रुतियांके मंडल बांधे हैं, तिनके नाम ऋग्वेदभाष्यमें प्रकट लिखे हैं. तिन प्रार्थना अश्वमेधादि यज्ञवाली सर्व श्रुतियांकी, चार संहिता, व्यासजीने बांधी और तिनके नाम ऋग्, यजुः, साम, अथर्व, रक्खे. तिन हिंसक श्रुतियोंमें, वा पुस्तकोंमें अहिंसक जैनधर्मके लिखनेका क्या प्रयोजन था? कदापि लिखा होवेगा तो, निंदारूप लिखा होगा. जैसे यज्ञविध्वंसकारक, राक्षस, वेदबाह्य, दैत्य, इत्यादि। पूर्वोक्त व्यासजीके कथन करे सूत्रोंसें तो, जैनमत, चारों वेदोंकी संहिता बांधनेसे पहिले विद्यमान था. क्योंकि, ग्रंथकार जिस मतका खंडन लिखता है, सो मत, तिसके समयमें प्रबल विद्यमान होता है, और ग्रंथकारके मतका विरोधि होता है, तब लिखता है. इससे भी यही सिद्ध होता है कि, जैनधर्म, सर्व मतोंसे पहिला सच्चा मत है. पूर्वपक्षः-अनेक व्यासजी हो गए हैं, क्या जाने किस व्यासजीने, किस समयमें येह ब्रह्मसूत्र रचे हैं ? उत्तरपक्षः-आर्यावर्त्तके सर्व प्राचीन वैदिकमतवाले तो, जे कृष्णमहाराजके समयमें कृष्णद्वैपायन बादरायण नामसें प्रसिद्ध थे, तिन व्यासजीकोही ब्रह्मसूत्रोंके कर्त्ता मानते हैं, अन्यको नही. और शंकरदिग्विजयमें तो प्रकटपणे वेदव्यासजीकोही ब्रह्मसूत्रोंके कर्ता लिखे हैं. पूर्वपक्षः-व्याससूत्रोंमें यह सप्तभंगीके खंडनेवाला सूत्र, किसीने पीछेसे दाखल करा है. For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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