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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ५०२ तत्त्वनिर्णयप्रासादअन्य वंशवालेके मृत्यु हुए, वा जन्म हुए, विवाहित पुत्रिको सूतकवालेके अन्नके खानेसें, इन सर्वमें तीन दिनका सूतक होवे है. । अन्न नही खानेवाले बालकका सूतक तीन दिनका होवे है । आठ वर्षसे कम ऐसे बालकका भी विभागोन सूतक होवे है.। स्वस्ववर्णानुसार सूतकके अंतमें जिनस्तव महोत्सवादि और साधर्मिकवात्सल्यादि करना, जिससे कल्याणप्राप्ति होवे.॥ इत्याचार्यश्रीवर्द्धमानसूरिकृताचारदिनकरस्य गृहिधर्मप्रतिबद्धस्य षोडशमांत्यसंस्कारस्याचार्यश्रीमद्विजयानंदसूरिविचितोवालावबोधस्समाप्तस्तत्समाप्तौ च समाप्तमिदं षोडशसंस्कारविवरणम्म् ॥ इंदुवाणांकचंद्राहे (१९५१) श्रावणिकसितच्छदे ॥ कृतोवालावबोधोयं विजयानंदसूरिणा ॥१॥ इत्याचार्यश्रीमद्विजयानंदसूरिविरचिते तत्त्वनिर्णयप्रासादग्रंथे षोडशमांत्यसंस्कारवर्णनोनामैकत्रिंशः स्तंभः ॥३१॥ ॥ विज्ञापनम्म् ॥ यह पूर्वोक्त सोळां संस्कारका विधि श्रीआचारदिनकरके अनुसार लिखा है, इसके लिखनेका यह प्रयोजन है कि, यह सांसारिक व्यवहारोंके संस्कारोंका विधि, श्रीऋषभदेवसें प्रचलित हूआ है, और जैसा श्रीऋषभदेवजीने प्रचलित करा था, तैसेंही श्री जैनाचार्योंने लिख दिखलाया है.। इनमें जो व्रतारोपसंस्कार है, सो तो गृहस्थका धर्मही जानना. शेष संस्कारोंमें धर्ममिश्रित जगत्व्यवहारकी रीति कथन करी है.। इस कालमें कोई यह नियम नहीं है कि, सर्व श्रावकोंने यह विधि अवश्य कर्त्तव्यही है; तथापि यदि यह विधि प्रचलित होवे तो अच्छी बात है. क्योंकि, श्रीजैनाचार्योंको यही विधि सम्मत है, और इसी वास्ते मुंबाइके श्रीजैनयुनियनक्लवके मेंबरोंकी, भरुचवाले शेठ अनुपचंद मलूकचंदकी, भावनगरकी श्रीजैनधर्मप्रसारकसभाके शाह कुंवरजी आनंदजीकी, बडोदेवाले शेठ गोकलभाइ दुल्लभदासकी, और कितनेक साधुओंकी सम्मतिसें हम For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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