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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ४७० तत्त्वनिर्णयप्रासाद“॥ॐ आपोऽप्काया एकेंद्रिया जीवा निरवद्यार्हत्पूजायां निर्व्यथाः संतु निरपायाः संतु सद्गतयः संतु न मेस्तु संघहनहिंसापापमहदर्चने ॥” इति जलाभिमंत्रणम् ॥ “॥ ॐ वनस्पतयो वनस्पतिकाया जीवा एकेंद्रिया निरवद्याहत्पूजायां निर्व्यथाः संतु निरपायाः संतु सद्गतयः संतु न मेस्तु संघटनहिंसापापमहंदर्चने ॥” इतिपत्रपुष्पफलधूपचंदनाद्यभिमंत्रणम् ॥ “॥ ॐ अग्नयोऽग्निकायाजीवा एकेंद्रिया निरवद्यार्हत्पूजायां निर्व्यथाः संतु निरपायाः संतु सद्गतयः संतु न मेस्तु संघटनहिंसापापमहदचन॥” इति वन्हिदीपाद्यभिमंत्रणम् ॥ सर्वका आभिमंत्रण वासक्षेपसें तीन तीन वार करना. ॥ तदपीछे। पुष्पगंधादि हाथमें लेके। " ॥ ॐ सरूपोहं संसारिजीवः सुवासनःसुमेध एकचित्तो निरवद्यार्हदचर्चने निर्व्यथो भूयासं निःपापो भयासं निरुपद्रवो भुयासं मत्सं श्रिता अन्येपि संसारिजीवा निरवद्यार्हदर्चने निर्व्यथा भूयासुः निःपापाभूयासुः॥" ऐसें कहके अपने आपको तिलक करना, पुष्पादिकरके अपना शिर अर्चन करना। फिर पुष्प अक्षतादि हाथमें लेके । " ॥ॐ पृथिव्यपूतेजोवायुवनस्पतित्रसकाया एकद्वित्रिचतुः पंचेंद्रियास्तिर्यङ्मनुष्यनारकदेवगतिगताश्चतुर्दशरज्ज्वात्मकलोकाकाशनिवासिनः इह जिनार्चने कृतानुमोदनाः संतु निःपापाः संतु निरपायाः संतु सुखिनः संतु प्राप्तकामाः संतु मुक्ताः संतु बोधमाप्नुवंतः॥' VO For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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