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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ४६६ तत्त्वनिर्णयप्रासाद पूजा करे, तिस दिनमें शुभ तिथि वार नक्षत्र लग्न में दीक्षाके उचित दिनमें परम युक्तिसें बृहत्स्नात्रविधिसें जिनपूजा करे, माता पिता परिजन साधर्मिकादिकोंको एकट्ठे करे, तदपीछे मालाग्राही कृतउचितवेष कृतधम्मिल उत्तरासंगवाला निजवर्णानुसारसें जिनोपवीत उत्तरीयादिधारी सज करके प्रचुरगंधादि उपकरण अक्षत नालिकेर हाथ में लेके पूर्ववत्समवसरणको तीन प्रदक्षिणा करे । तदपीछे गुरु के समीपे क्षमाश्रमणपूर्वक कहे ॥ " इच्छाकारेण तुम्भे अम्हें पंचमंगलमहासुअक्खंध इरि आवहिआसुअक्खंधसकथ्थय सुअक्खंधचे इ अथ्ययसुअक्खंध चडवीसथ्थयसुअक्बंध सुयध्यय सुअक्खंध अणुजणावणिअं वासक्खेवं करेह " ॥ तदपीछे गुरु भी अभिमंत्रित वासक्षेप करे । फिर श्राद्ध क्षमाश्रमणपूर्वक कहे "चेइआईं च वंदावेह " तदपीछे वर्द्धमानस्तुतियोंसें चैत्यवंदन करना, शांतिदेवादि स्तुतियां पूर्ववत् फिर शक्रस्तव अर्हणादि स्तोत्र कहना. पूर्ववत् । तदपीछे ऊठके “ पंचमंगलमहासु अक्खंच पडिक्कमणसुअक्खंध भावारिहंतथ्य व्वणारिहंतथ्य चउवीसथ्यय नाणध्थय सिद्धध्थय अणुजाणावणिअं करेमि काउस्सगं अन्नथ्थ उससिएणं यावत् - अप्पाणं वोसिरामि” कहके चतुर्विंशतिस्तव चिंतन करे, पारके प्रकट चतुर्विंशतिस्तव पढे । गुरु तीनवार परमेष्ठिमंत्र पढके निषद्याऊपर बैठ जावे, संघ और परिजनसहित श्राद्धको भो भो देवाणुपिया संपाविअ निययजम्मसाफलं ॥ तुमए अज्जप्पाभिई तिक्कालं जावजीवा ॥ १ ॥ वंदे अवाई चेइआई एगग्गसुथिरचित्तेणं ॥ खणभंगुराओ मणुअत्तणाओ इणमेव सारंति ॥ २ ॥ तथ्थ तुमे पुव्वहे पाणंपि न चैव ताव पायव्वं ॥ नो जाव चेइआई साहूविअ वंदिआ विहिणा ॥ ३॥ मज्झहे पूणरवि वंदिऊण निअमेण कप्पए भुत्तुं ॥ अवरहे पुणरवि वादंऊण नअमण सुअणंति ॥ ४ ॥ For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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