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अष्टाविंशस्तम्भः ।
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वासक्षेप, क्षमाश्रमणआदि, पूर्ववत् जानने. परंतु सर्वत्र सम्यक्त्व सामायिकके स्थान में देशविरतिसामायिकका नाम ग्रहण करना । सर्वत्र तैसें करके फिर दूसरी नंदि दंडकोच्चारणसें प्रथम करनी । व्रतोच्चार कालमें नमस्कार तीन पाठानंतर, हाथमें ग्रहण करे परिग्रह परिमाण टिप्पनक ( फहरिस्त - नोंध ) ऐसे श्रावकको, गुरु, देशविरतिसामायिकदंडक उच्चरावे. ॥
सयथा ॥
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“ ॥ अहणं भंते तुम्हाणं समीवे थूलगं पाणाइवायं संकप्पओ बीइंदिआइजीवनिकायनिग्गहनियद्विरूवं निरावराहं पच्चक्खामि जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि तस्स भंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ॥
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यह पाठ तीनवार कहना ॥ १ ॥ इसीतरें सर्व व्रतोंमें तीन २ वार
पाठ पढना. ॥
“॥ अहणं भंते तुम्हाणं समीवे थूलगं मुसावायं जीहाच्छेयाइनिग्गहऊअं कन्नागोभूमिनिक्खेवावहारकूडसक्खाइपंचविहं दक्खिन्नाइ अविसए अहागहिअभंगएणं पञ्चक्खामि जावजीवा दुविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं० ॥ २ ॥ " “ ॥ अहणं भंते तुम्हाणं समीवे थूलगं अदिन्नादाणं खत्तख - णणाइ चोर कारकरं रायनिग्गहकरं सच्चित्ताचित्तवत्थुविसयं पञ्चक्खामि जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं० ॥ ३ ॥
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॥ अहणं भंते तुम्हाणं समीवे थूलगमेहुणं उरालियवेउवियभेअं अहागहिअभंगएणं तत्थ दुविहं तिविहेणं दिवं एगविहं तिविहेणं तेरिच्छं एगविहमेगविहेणं माणुस्सं पञ्चक्खामि जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं० ॥ ४ ॥
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