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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ४३० तत्त्वनिर्णयप्रासादवैरीको मारना, चूरना है, अथवा किसीका भय है, जिस वास्ते शस्त्रधारण किये हैं.। अक्षसूत्र असर्वज्ञपणेका चिन्ह है, जो हाथमें माला धारण करे तो जाणिये कि, इसमें सर्वज्ञपणा नहीं है. यदि होवे तो, मणके विना गिणतीकी संख्या जाणलेवे. अथवा तिससे अधिक बड़ा अन्य कोई है, जिसका वो जाप करता है. यदि अन्य कोई नहीं है तो, जपमालासे किसका जाप करता है ? । कमंडलु अशुचिपणेका चिन्ह है, यदि हाथमें कमंडलु पाणीका भाजन देखीए तो, ऐसा जाणिये कि, यह अशुचि है. शौच करणेके वास्ते यह कमंडलु धारण करता है.। यत उक्तम्। स्त्रीसंगः काममाचष्टे द्वेषं चायुधसंग्रहः ॥ व्यामोहं चाक्षसूत्रादिरशौचं च कमंडलुः ॥१॥ इन पूर्वोक्त दोषोंकरके जे कलंकित दूषित है,तथा निग्रहा०जिसके उपर रुष्टमान होवे, तिसको निग्रह (बंधनमरणादिक) करें, और जिसके ऊपर तुष्टमान होवे, तिसको अनुग्रह (राज्यादिकके वर) देवें; तेदेवा. जे ऐसें रागादिकोंकरके दूषित हैं, वे देव, मुक्तिके हेतु नही होते हैं. ॥ ५॥ ऐसे पूर्वोक्त देव अपने सेवकोंको मोक्ष नही दे सकते हैं, सोही वात फिर कहते हैं. । नाट्यादृ० जे देव नाटकके रसमें मग्न हैं, अट्टाहास करते हैं, वीणा लेके संगीत गानादिक करते हैं, इत्यादि उपप्लव संसारकी चेष्टा तिनोंकरके जे विसंस्थुल निःप्रतिष्ठ अस्थिर है; लंभयेयुः--जे आपही ऐसे हैं, वे देव, अपने प्रपन्न आश्रित सेवकोंको शांतपद, संसार चेष्टारहित मुक्ति केवलज्ञानादिकपद, कैसे प्राप्त कर सकते हैं ? जैसें एरंडवृक्ष कल्पवृक्षकीतरें इच्छा नही पूर सकता है, यदि किसी मूढ पुरुषने एरंडको कल्पवृक्ष मान लिया तो, क्या वो कल्पवृक्षकोतरें मनोवांछित दे सकता है? ऐसेंही किसी मिथ्या दृष्टीने पूर्वोक्त दूषणोंवाले कुदेवोंको देव मान लिये तो, क्या वे देव परमेश्वर मोक्षदाता हो सकते हैं? कदापि नही हो सकते हैं. ॥६॥ For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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