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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ४२० तत्त्वनिर्णयप्रासादअहेवय असया असहस्सं च अट्टलक्खं च ।। अट्टेवय कोडीओ सो तइयभवे लहइ सिद्धिं ॥३३॥ एसो परमो मंतो परमरहस्सं परंपरं तत्तं ॥ नाणं परमं णेअं सुद्धं ज्झाणं परं ज्झेयं ॥३४॥ ग्वं कवयमभेयं खाइयमच्छं पराभुवणरक्खा ॥ जोईसुन्नं बिंदु नाओ तारालवो मत्ता ॥३५॥ सोलसपरमक्खरबीअबिंदुगप्भो जगुत्तमो जोओ॥ सुअबारसंगसायरमहच्छपुवच्छपरमच्छो ॥३६॥ नासेइ चोरसावयविसहरजलजलणबंधणसयाइं ॥ चिंतिज्जंतो रक्खसरणरायभयाइं भावेण ॥३७॥ ॥ इतिअरिहणादिस्तोत्रम् ॥ इस अरिहणादि स्तोत्रको पढके “जय वीयराय जगगुरु०” इत्यादि गाथा पढे । पीछे आचार्य उपाध्याय गुरु साधुयोंको वंदना करे.। यह शक्रस्तवविधि, गुरु और श्रावक दोनोंही करे. । चैत्यवंदनके अनंतर, श्राद्ध, क्षमाश्रमणदानपूर्वक कहे. “॥भगवन् सम्यक्त्वसामायिकश्रुतसामायिकदेशविरतिसामा यिकआरोवणि नंदिकद्दावणि काउसग्गं करेमि॥" गुरु कहे “करह” तब श्रावक “सम्मत्ताइतिगारोवणि करेमि काउसग्गं अनच्छ०” इत्यादि कहके सत्ताइस ऊसास प्रमाणअर्थात् 'सागरवरगंभीरा'लग कायोत्सर्ग करे। पीछे नमो अरिहंताणं कहके पारके चतुविशतिस्तव अर्थात् लोगस्स संपूर्ण पढे । पीछे मुखवस्त्रिका प्रतिलेखनपूर्वक श्रावक द्वादशावर्त वंदन करे, फिर क्षमाश्रमण देके कहे “ भगवन सम्मत्ताइतिगं आरोवेह” गुरु कहे “ आरोवेमि” पीछे श्रावक गुरुके आगे खडा होके, अंजलि करी, मुखवस्त्रिकासें मुखाच्छादन करी, तीन वार परमेष्ठिमंत्र पढे। पीछे सम्यक्त्वदंडक पढे. For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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