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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४१६ तत्त्वनिर्णयप्रासाद कायोत्सर्ग में एक नमस्कार चिंतन करे, पीछे 'नमो अरिहंताणं ' कहके पारे, पारके 'नमोर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः' कहके थूई पढे । यथा ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य साधुभिः साध्यते क्रिया ॥ सा क्षेत्रदेवता नित्यं भूयान्नः सुखदायिनी ॥ १ ॥ पुनरपि ॥ " “ ॥ भुवनदेवताराधनार्थे करेमि काउसग्गं अन्नच्छ उससिएणं-यावत् — अप्पाणं वोतिरामि ॥ " यथा ॥ कायोत्सर्ग में एक नमस्कार चिंतन करे, पीछे 'नमोअरिहताणं ' कहके पारे, पारके 'नमोर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः' कहके स्तुति पढे । 6 ज्ञानादिगुणयुक्तानां नित्यं स्वाध्यायसंयमरतानां ॥ विदधातु भुवनदेवी शिवं सदा सर्वसाधूनाम् ॥ १ ॥” पुनरपि ॥ “ शासनदेवताराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नच्छ० कायोत्सर्ग में एक नमस्कार चिंतन करे, पीछे 'नमोअरिहंताणं' कहके पारे, पारके नमोर्हत्सिद्धा• ' कहके स्तुति पढे. 6 "" यथा. ॥ " या पाति शासने जैनं सद्यः प्रत्यूहनाशिनी ॥ साभिप्रेतसमृद्ध्यर्थं भूयाच्छासनदेवता ॥ १ ॥ ” For Private And Personal पुनराप. ॥ “ समस्तवैयावृत्त्यकराराघनाथं करोमे काउसग्गं अन्नच्छ० " कायोत्सर्गमें एक नमस्कार चिंतन करे, पीछे 'नमो अरिहंताणं ' कहके पारे, पारके : नमोईत्सिद्धा० ' कहके स्तुति पढे.
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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