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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ४०० तत्त्वनिर्णयप्रासाद गोत्र, प्रवर, ज्ञाति, और अन्वयको प्रकाश करे । तदपीछे कन्याके पक्षीय, अपने गोत्र, प्रवर, ज्ञाति, अन्वयको प्रकाश करे । फिर कन्याकी माताके पक्षीय, गोत्र, प्रवर, ज्ञाति, अन्वयको प्रकाश करे. । तदपीछे गृह्यगुरु. ॥ ॥ ॐ अर्ह अमुकगोत्रीयः इयत्प्रवरः अमुकज्ञातिः अमुकान्वयः अमुकप्रपौत्रः अमुकपौत्रः अमुकपुत्रः अमुकगोत्रीयः इयत्प्रवरः अमुकज्ञातीयः अमुकान्वयः अमुकप्रदौहित्रः अमुकदौहित्रः अमुकः सर्ववरगुणान्वितो वरयिता अमुकगोत्रीया इयत्प्रवरा अमुकज्ञातीया अमुकान्वया अमुकप्रपौत्री अमुकपौत्री अमुकपुत्री अमुकगोत्रीया इयत्प्रवरा अमुक ज्ञातीया अमुकान्वया अमुकप्रदौहित्री अमुकदौहित्री अमुका व तदेतयोर्वय्यवरयोर्वरवर्ण्ययोर्निविडोविवाहसंबंधोस्तु शांतिरस्तु तुष्टिरस्तु पुष्टिरस्तु धृतिरस्तु बुद्धिरस्तु धनसंतानवृद्धिरस्तु अर्ह ॐ ॥ " ऐसें कहे . ॥ तदपीछे गृह्यगुरु, वरवधूके पाससें गंध, पुष्प, धूप, नैवेद्य करके अग्निकी पूजा करवावे. | पीछे वधू लाजांजलिको अग्निमें निक्षेप करे. । तदपीछे फिर तैसेही दक्षिण पासे वधू, और वामे पासे वर बैठे । पीछे गृह्यगुरु वेदमंत्र पढे. "|| ॐ अर्ह अनादिविश्वमनादिरात्मा अनादिकालः अनादिकर्म्म अनादिसंबंधो देहिनां देहानुमतानुगतानां क्रोधाहंकारछद्मलोभैः संज्वलनप्रत्याख्यानावरणाप्रत्याख्यानानंतानुबंधिभिः शब्दरूपरसगंधस्पर्शेरिच्छानिच्छापरिसंकलितैः संबंधोनुबंधः प्रतिबंधः संयोगः सुगमः सुकृतः स्वनुष्ठितः सुनिवृत्तः सुप्राप्तः सुलब्धो द्रव्यभावविशेषेण ॐ ॐ ॥ 39 For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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