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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir तत्त्वनिर्णयप्रासादसमयांतरमें, देशांतरमें वा कुलांतरभे, वेद्यंतरमेंही, हस्तलेपन करते हैं. देश कुलाचारादिमें मधुपर्क प्राशनके अनंतर, वेदि; और हस्तलेपर्से पहिले परस्पर कंबायुद्ध, वधूवरास्फालन, वेडानयन, मणिग्रथन, स्नान, भ्राष्टकर्म, पर्याणकर्म, वस्त्रकोसुंभसूत्रांतःकर्षणप्रमुख, कर्म करते हैं. वे देशविशेषलोकोंसें जाण लेने. व्यवहार शास्त्रोंमें नहीं कहे हैं. परंतु स्त्रीयोंको सौभाग्यप्राप्तिवास्ते, शौक आदि न होवे तिसके वास्ते, वरको वशीभूत करनेकेवास्ते करते हैं. ॥ __ तदपीछे युक्त हाथवाले, नारी और नरकी कटीउपर चढे हुए वधूवर दोनोंको, गीतवाजंत्रादि बहुत आडवरसें दक्षिण द्वारसें प्रवेश कराके वेदिके मध्यमें लावे.। तदपीछे देशकुलाचारसे काष्ठासनोंके ऊपर, वा वेत्रासनोंके ऊपर, वा सिंहासनके ऊपर, वा अधोमुखी शरमय खारीके ऊपर, वधूवरको पूर्वसन्मुख विठलावे. । तथा हस्तलेपमें, और वेदिकर्ममें कुलाचारके अनुसार दसियां सहित कौरवस्त्र, वा कौसुंभवस्त्र, वा स्वभाववस्त्र वधूवरको पहिरावे हैं. । तदपीछे गृह्यगुरु, उत्तरसन्मुख मृगचर्म ऊपर बैठाहुआ, शमी, पिप्पल, कपित्थ (कवठ-कएतवेल) कुटज (कुडची-जिस वृक्षका फल इंद्रयव होता है ), विल्व, आमलकके इंधनकरके आग्निको जगाके, इस मंत्रकरके घृत मधु तिल यव नाना फलोंका हवन करे ॥ मंत्रो यथा ॥ "॥ॐ अर्ह अग्ने प्रसन्नः सावधानो भव तवायमवसरः तदाहारयेंद्र यमं नैर्ऋतं वरुणं वायुं कुबेरमीशानं नागान् ब्रह्माणं लोकपालान् ग्रहांश्च सूर्यशशिकुजसौम्यबृहस्पतिकविशनिराहुकेतून सुरांश्चामुरनागसुपर्णविद्युदग्निद्वीपोदधिदिक्कुमारान् भुवनपतीन् पिशाचभूतयक्षराक्षसकिन्नरकिंपुरुषमहोरगगंधर्वान् व्यंतरान् चंद्रार्कग्रहनक्षत्रतारकान् ज्योतिष्कान् सौधम्र्मेशान् * सनत्कुमारमाहेंद्रब्रह्मलांतकशुक्रसहस्रारा* प्रत्यंतरे 'श्रीवत्माखंडरपद्मोत्तरब्रह्मोत्तर ' इत्यधिकपाठो दश्यते. For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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