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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ३९६ तत्त्वनिर्णयप्रासाद हैं । तदपीछे वधुवरको मातृघरमें बैठे हुए, कन्याके पक्षी, वेदिकी रचना करें; तिसका विधि यह है. ॥ कितनेक काष्ठस्तंभ काष्ठाच्छादनोंकरके चौकुणी वेदी करते हैं; और कितनेक चारों कृणोंमें स्वर्ण, रूप्य, ताम्र, वा माटीके सात सात कलशोंको ऊपर लघु लघु, अर्थात् प्रथम बडा उसके ऊपर छोटा, उसके ऊपर फिर छोटा, एवं स्थापन करके चारों पासे चार चार आई वांसोंसें बांधके वेदि करते हैं. चारों बार में वस्त्रमय, वा काष्ठमय तोरण, और वंदनमालिका बांधते हैं; और अंदर त्रिकोण अनिका कुंड करते हैं। वेदी बनाया पीछे गृह्यगुरु, पूर्वोक्त वेष धारण करके वेदिकी प्रतिष्ठा करे । तिसका विधि यह है. ॥ १ ऋत्विजत्वा मधुपर्कमाहरेत् । १-२४- १ ।। २स्नातक यो। पस्थिताय | १|२४|२|| ३राशे च |१|२४|३|| ४आचार्यश्वशुरपितृव्यमातुलानां च | १|२४ । ४ । ५ आचांतोदकाय गां वेदयन्ते । ११२४/२३ || ६ हतो मे पाप्यापाप्मामे हत । इति जपित्वों कुरुतेति कारयिष्यन् | १|२४|२४|| [ नारायणवृत्ति-इमं मंत्रं जपित्वा ओम् कुरुतेति ब्रूयात् यदि कारयिष्यन् मारयिष्यन् भवति तदा च दाता आलभेत् ] ७ नामांसो मधुप भवति ।। ११२४/२६ || [ नारायणवृत्ति - मधुपर्कागभोजनं अमांसं न भवतीत्यर्थः पशुकरणपक्षे तन्मांसेन भोजनं उत्सर्जनपक्षे मांसांतरेण ] - अर्थः ॥ यज्ञ करनेवास्ते ऋत्विज खडा करते वखत तिसको मधुपर्क देना चाहिये । इसीतरें विवाहवास्ते जो वर घरमें आवे तिसको, और राजा घर में आवे तिसको मधुपर्क देना चाहिये । आचार्य, गुरु, श्वशुर, चाचा, मामा, येह घरमें आवे तो तिनको भी मधुपर्क देना चाहिये । मुख साफ करनेवास्ते पाणी देकर तिसके आगे गाय खड़ी रखनी चाहिये । सूत्रमें लिखा मंत्र पढके ओम् कहके वरके स्वामिने गौका वध करना। मधुपर्कंगभोजन, विनामांस के नही होता है, इसवास्ते पशु बधपूर्वक मधुपर्क करा होने तो, तिसही पशुका मांस भोजनके काममें आत्रे, और पशुको छोड दीया होवे तो, और मांससें भोजन कराना चाहिये. ॥ तथा मणिलाल नभाइ द्विवेदी सिद्धांतसार में लिखते हैं ॥ “ विवाह के संबंध में मधुपर्ककी बात कहनेजोग है. ऐसा धर्माचार है कि आये हुए अतिथिके वास्ते मधुपर्क करना चाहिये. वर भी अतिथिही है. असल जैसें यज्ञकेवास्ते गोवध विहित था, तैसें मधुपर्कवास्ते भी गौका वा बैलका वध विहित था. मांसविना मधुपर्क नहीं ऐसें आश्वलायन कहता है; और नाटकादिकोंसें मालुम होता है, कि अच्छे महर्षियों वास्ते भी, मधुपर्क में गोत्रध किया है. आश्वर्यकी बात है, कि जो गौ आज बहुत पवित्र गिणी जाती है, तिसको प्राचीन समय में यज्ञके वास्ते तथा मधुपर्कके वास्ते मारनेका रीवाज था ? हाल तो मधुपर्क में फक्त दधि मधु और वृत ही वापरते हैं. " जैसे अनार्य वेदोंमें हिंसक क्रिया कथन करी नही है । और मधुपर्क में तथा यज्ञमें प्रायः जीववव बंध हुआ है सो भी जैन, बौद्ध, जोर ( बल ) का प्रताप है. मणिलाल नभुभाइ सिद्धांतसारमें लिखते हैं ॥ " पाटण, खंभात, जैसलमेर, जेपुर आदि स्थलोंके जैनभंडार लाखों पुस्तकों में भरपूर हैं, और विद्याके स्वरे भंडाररूप हैं. इसतरें दृढ है, तैसें आर्य वेदोंमें वैष्णवादि संप्रदाय के For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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