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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अनुक्रर्माणका. www.kobatirth.org प्रथम स्तंभ - प्राकृत भाषा और वेदोंका संक्षेप वर्णन. मंगलाचरण मतमतांतरों के पुस्तकविषयक विवेचन प्राकृत भाषाविषयक शंकासमाधान वेदोंमें जो वर्णन है तिसका संक्षेप मात्र दिग्दर्शनरूप बीजक द्वितीय स्तंभ- - देवविषयक वर्णन महादेव स्वरूपका वर्णन वस्तुमात्र स्याद्वाद मुद्रा करके मुद्रित है। स्वयंभू वर्णन शिवशंकरादि नामोंका वर्णन .... .... .... २५-८३ २५ २६ ३१ ३१ ३८ एकहि जिन अन् ब्रह्मा विष्णु महादेव रूप व्यात्मक है, अन्य नहीं.... लौकिक ब्रह्माविष्णुमहादेव में उनकेही शास्त्रद्वारा ज्ञानदर्शन चारित्र नहीं है ४२ ज्ञानदर्शन चारित्ररहित मुक्ति के वास्ते नहीं होते हैं, अर्हन् शब्दका स्वरूप. ७३ अष्ट प्रतिहार्य का वर्णन तथा भर्तृहरिके कथानुसार ब्रह्मादिका स्वरूप इत्यादि वर्णन DAGD तृतीय स्तंभ-- श्री हेमचंद्राचार्यकृत श्रीवीरद्वात्रिंशिकाका अर्थ निर्माण किया है। द्वात्रिंशिका अर्थ लिखनेका प्रयोजन .... 8000 For Private And Personal .... .... **** Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir **** .... **** 99.9 .... ८३-११८ ८३ ८४ ८६ ८७ स्तुतिकारका मंगलाचरण आत्मरूप शब्दका और परमात्माका अर्थ महावीर और हेमचंद्राचार्यका प्रश्नोत्तर रूप काव्य स्तुतिकारकी निरभिमानिनताका और पूर्वाचायोंकी बहुमानताका काव्य ८६ भगवान में अयोग व्यवच्छेदका काव्य असत् उपदेशकपणेका व्यवच्छेदका काव्य, नवतत्व, वेद, बौद्ध, सांख्यादि अन्यमतवालोंका कथन तुरंगशृंग समान है भगवान में व्यर्थ दयालुपणेका व्यवच्छेदका काव्य असत्य पक्षपातियोंका स्वरूप भगवान् के शासनका महत्व वर्णन भगवान शासनका शंकाकारको उपदेश .... **** .... .... **** 9836 .... .... .... .... १ ४ **** १३ **** ७७ ८८ ९२ ९३ ९४ ९५
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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