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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ३८० तत्त्वनिर्णयप्रासादनेवाले, माहनोंके आचारमें रक्त, सर्व गृह्यसंस्कारप्रतिष्ठादिकर्मोके करानेवाले, ऐसें ब्राह्मण, पूज्य होते हैं. । नही, वे पूर्वोक्त ब्राह्मण, क्षत्रियादि राजायोंको, सेवा, अन्नपाक, तिसके आज्ञा करनी, अभ्युत्थान, चाटुः-मनोहर वचन, प्रशंसा, विना नमस्कारके आशीर्वाद देना, विज्ञानकर्म, कृषिवाणिज्यकरण, तुरंगवृषभादि शिक्षाकरण, इत्यादिवास्ते जोडने कल्पते हैं. इसवास्ते तथाविध पूर्वोक्त कर्मोंमें, बटूकृत ब्राह्मण, योजन करने योग्य होते हैं. इसवास्ते तिन ब्राह्मणोंको बटू करनेका विधि कहते हैं. उक्तं च यतः॥ च्युतव्रतानां व्रात्यानां तथा नैवेद्यभोजिनाम् ॥ कुकर्मणामवेदानामजपानां च शस्त्रिणाम् ॥ १॥ ग्राम्याणां कुलहीनानां विप्राणां नीचकर्मणाम् ॥ प्रेतान्नभोजिनां चैव मागधानां च बंदिनाम् ॥२॥ घांटिकानां सेवकानां गंधतांबूलजीविनाम् ॥ नटानां विप्रवेषाणां पशुरामान्ववायिनाम् ॥३॥ अन्यजात्युद्भवानां च बंदिवेषोपजीविनाम् ॥ इत्यादिविप्ररूपाणां बटूकरणमिष्यते ॥४॥ अर्थः-व्रतसें भ्रष्ट हुए, संस्कारहीन, नैवेद्यका भोजन करनेवाले, कुकर्मके करनेवाले, वेदको नही जाणनेवाले, वेद मंत्रोंका जप न करनेवाले, शस्त्रको धारण करनेवाले, ग्रामके वसनेवाले, कुलहीन, नीच कर्मके करनेवाले, प्रेतके अन्नका भोजन करनेवाले, मागध-स्तुतिपाठ पढनेवाले बंदी-राजादिकी स्तुति पढनेवाले, घंटिका बजानेवाले, सेवा करनेवाले, गंधतांबूलकरके आजीविका करनेवाले, विप्रवेष धारण करनेवाले नट, पशुरामके संतानीय, अन्य जातिसे उत्पन्न हुए, बंदिवेषसें आजीविका करनेवाले, इत्यादि विप्ररूपको बटुकरण इच्छते हैं । तिसका यह विधि है. प्रथम तिसके घरमें गृह्यगुरु, यथोक्त विधिसें पौष्टिक करे. पीछे तिसको For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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