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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir तत्त्वनिर्णयप्रासादडुकरे। गरुडवाहने । कृष्णवर्णे। इह षष्ठीपूजने आगच्छ २॥" शेषं पूर्ववत् ॥ ४॥ “॥ ॐ ह्रीं नमो भगवति। वाराहि । वराहमुहि । चक्रखड़हस्ते। शेषवाहने। श्यामवर्णे। इह षष्ठीपूजने आगच्छ २॥ शेषं पूर्ववत् ॥ ५॥ “॥ॐ ही नमो भगवति।इंद्राणि। सहस्रनयने। वजहस्ते। सर्वाभरणभूषिते। गजवाहने। सुरांगनाकोटिवेष्टिते।कांचनवणे। इह षष्ठीपूजने आगच्छ २॥” शेषं पूर्ववत् ॥ ६॥ "॥ॐ ह्रीं नमो भगवति । चामुंडे । शिराजालकरालशरीरे। प्रकटितदशने। ज्वालाकुंतले।रक्तत्रिनेत्रे।शूलकपालखडप्रेतकेशकरे।प्रेतवाहने।धूसरवणे। इह षष्ठीपूजने आगच्छ२॥" शेषं पूर्ववत् ॥ ७॥ “॥ॐ ह्रीं नमो भगवति। त्रिपुरे। पद्मपुस्तकवरदाभयकरे । सिंहवाहने । श्वेतवर्णे। इह षष्ठीपूजने आगच्छ २॥" शेषं पूर्ववत् ॥ ८॥ एवं जैसे उर्ध्व (खडी) मातृयांका पूजन करे, तैसेंही बैठी और सुप्त मातृयांका भी पूर्वोक्त मंत्रोंसेंही तीनवार पूजन करे; । कितनेक चामुंडा, त्रिपुरा, दोनोंको वर्जके षटमातृकाही पूजन करते हैं. ॥ मातृका पूजन करके ऐसें पढे. ॥ ब्रह्माद्यामातरोप्यष्टौ स्वस्वास्त्रबलवाहनाः॥ षष्ठीसंपूजनात्पूर्व कल्याणं ददता शिशोः ॥ १॥ तदपीछे मातृस्थापनाकी अग्रभूमिमें चंदनलेपस्थापना करके, अंबारूप षष्ठीको स्थापन करे । और तिस स्थापनाको दाध, चंदन, अक्षत, दुर्वादिकरके पूजे। For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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