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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir (86) अर्थ:-- मुनीश्वर, गौ, राजा, मोर, हाथी, बैल, यह चलनेके समय तथा प्रवेशके समय सामने आवैं तौ शुभ हैं और कमलनी, राजहंस, जिनकल्पीमुनि जिस देशमें हों उस देशमें सुख हो । वाराहिसंहिता, गणेशपुराणादि ग्रंथों में जैनके विषयमें बहोत लेख हैं कहांतक लिखा जाय. अन्यमतवाले हंसते हैं कि जैनीलोक कंदमूल नही खाते और रात्रीभोजन नही करते हैं, परंतु उनके ग्रंथोंमें भी इनही बातोंका निषेध है. || महाभारत ग्रन्थ ॥ मद्यमांसाशनं रात्रौ भोजनं कन्दभक्षणं । ये कुर्वति वृथा तेषां तीर्थयात्राजपस्तपः ॥ या अर्थ:- जो कोई मदिरा पीता है मांस खाता है या रात्रीको भोजन करता है कन्द [ धरतीके नीचे जो बस्तु पैदा हुई आलू अद्रक मूली गाजरआदिक] खाता है उस पुरुषका तीर्थयात्रा जप तप सब बृथा है. ॥ मार्कंडेयपुराण || अस्तं गते दिवानाथे अपोरुधिरमुच्यते । अन्नं मांससमं प्रोक्तं मार्कंडेय महर्षिणा ॥ अर्थ:-- सूरजके अस्त होने के पीछे जल रुधिर सपान और अम्न मांस समान कहा है. || भारत ग्रन्थ ॥ चत्वारोनरकद्वारं प्रथमं रात्रिभोजनं । परस्त्रीगमनं चैव संधानानंतकायकं ॥ ये रात्रौ सर्वदाहारं वर्जयंते सुमेधसः । तेषां पक्षोपवासस्य मासमेकेन जायते । नोदकमपि पातव्यं रात्रावत्र युधिष्ठिर । तपस्विनोविशेषेण गृहिणांचविलोकिनां ॥ अर्थ - - नरकके चार द्वार हैं, प्रथम रात्रिभोजन करना, दूसरा परस्त्रीगमन, तीसरा संधाना खाना, चौथा अनंत काय अर्थात् कंद मूल आदिक ऐसी वस्तु खाना जिसमें अनंत जीव हों । जो पुरुष एक महिनेतक रात्रिभोजन न करे उसको एक पक्षके उपवासका फल होता है. है युधिष्ठिर ! गृहस्थीको और विशेषकर तपस्त्रीको रातको पानी भी नहीं पीना चाहिये । मृते स्वजनमात्रेपि सूतकं जायते किल । अस्तंगते दिवानाथे भोजनं क्रियते कथं । रक्ताभवति तोयानि अन्नानि पिशितानि च । For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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