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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir २२७, नवमस्तम्भः। नादि अनंत सर्वव्यापक मानते हैं, तो, क्या गौतमादिकोंने ये पूर्वोक्त वेदकी श्रुतियां पठन नही करी होवेंगी ? करी तो होवेंगी, परंतु युक्तिप्रमाणसे विरुद्ध मानके नवीन प्रक्रिया गौतम कणाद जैमिनीने रची मालुम होती है. प्रजापतिके कानोंसें दिशा उत्पन्न होती भई, यह भी कथन अज्ञताका है. क्योंकि, दिशा तो आकाशकाही पूर्वादि कल्पित भागविशेषका नाम है. जब नाभिसें आकाश उत्पन्न भया तो, कानोंसें दिशा क्योंकर उत्पन्न भई लिखा है ? और अरूपी दिशायोंका कोई भी उपादानकारण नहीं है, इसवास्ते यह भी कथन मिथ्या है. इतिसमीक्षा ॥ इत्याचार्यश्रीमद्विजयानन्दसूरिविरचिते तत्त्वनिर्णयप्रासादे ऋगादिसृष्ट्य नुक्रमसमीक्षावर्णनोनामाष्टमः स्तम्भः॥ ८॥ ॥ अथ नवमस्तम्भारम्भः॥ अष्टमस्तंभमें ऋगादिसृष्टिक्रमकी समीक्षा करी, अथ नवमस्तंभमें वेदके कथनकी परस्पर विरुद्धता संक्षेपरूपसें दिखाते हैं. तमिद्गर्भम्प्रथमं दध्र आपो यत्र दे॒वाः समगछन्त विश्व॥ अजस्य नाभावध्ये कमर्पितं यस्मिन् विश्वानि भुवनानि तस्थुः॥ ॥ य० वा० सं० अ० १७ मं० ३० ॥ भाषार्थः-(अ) * (तमिद्गर्भ प्रथमं दध्र आपः) प्रथमं अर्थात् संपूर्णस्सृष्टिकी आदिमें (आपः-जलानि ) जल जो हैं सो वह (तमित्गर्भ ) तिस प्राप्त गर्भकों ( दधे ) धारण करते भये कि (यत्र देवाः समगछन्त विश्वे) जिस संपूर्ण विश्वके कारणभूत गर्भरूप ब्रह्माजीमें संपूर्ण देवता उत्पन्न हो कर व्याप्त हो रहे हैं सो (अजस्य नाभावध्येकमर्पितं ) जन्मादिसें जो रहित सो कहावे अज ऐसा जो परमात्मा तिसकी नाभीमें अर्पित जो कमल तिसमें संपूर्ण विश्वका ___ जहां ( अ ) ऐसा संकेत होवे वहां ब्रह्मकुशलोदासीकृतऋगादिभाप्पभूमिकेंदु नाम पुस्तकका लिखित भाषार्थ जानना ॥ For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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