SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 330
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir २२० - तत्त्वनिर्णयप्रासादहै, जो ब्रह्मका चौथा अंश है, सो मायामें आकर देवतिर्यगादिरूपकरके विविध प्रकारका हुआ थका व्याप्त हुआ. क्या करके ? चेतन अचेतन रूपकरके, सोही दिखाते हैं; तिस आदि पुरुषसें विराट्, अर्थात् ब्रह्मांड उत्पन्न भया, तिसमें जीवरूपकरके प्रवेशकरके ब्रह्मांडाभिमानी देवात्मा जीव होता भया, पीछे विरासें व्यतिरिक्त देव तिर्यङ् मनुष्यादिरूप होता भया, पीछे देवादि जीवभावसें भूमिको सृजन करता भया, अथ भूमिसृष्टिके अनंतर तिन जीवोंके शरीर रचता भया, शरीरोंके उत्पन्न हुए थके देवते, उत्तर सृष्टिकी सिद्धिवास्ते बाह्यद्रव्यके अनुत्पन्न होनेसें हविके अंतर असंभव होनेसें पुरुषस्वरूपही मनः करी हविपणे संकल्पकरके पुरुषनामक हविकरके मानस यज्ञका विस्तार करते भए; तिस अवसरमें तिस यज्ञका वसंत ऋतु घृत होता भया, ग्रीष्म ऋतु इध्म होता भया, शरदृतु हवि होता भया, अर्थात् तिसकोही पुरोडाशाभिध हविकरके कल्पन करते भए; यज्ञका साधनभूत पुरुष तिसकों पशुत्वभावनाकरके यूपमें बांधते हुए, बर्हिषि मानस यज्ञमें प्रोक्षण करता भया, कैसा पुरुष ? सर्वसृष्टिसें पहिले उत्पन्न भया, तिस पशुरूप पुरुषकरके देवते पूजते भए, मानस यज्ञ निष्पन्न करते भए. कौन ते देवते ? सृष्टि के साधन योग्य प्रजापतिप्रभृति, तिनके अनुकूल ऋषिमंत्रोंके देखनेवाले यजन करते भए, सर्वहुत पुरुषसें अर्थात् मानस यज्ञसें दधिमिश्रित घृत संपादन करा, वायु देवसंवधी लोकमें प्रसिद्ध हरिणादि आरण्य पशुयोंकों उत्पन्न करता भया, ग्राम्य पशु गौआदि तिनकों उत्पन्न करता भया, तिस यज्ञसें ऋच् साम उत्पन्न भए, तिससेंही गायन्यादि छंद उत्पन्न भए, तिस यज्ञसेंही यजुर्वेद होता भया, तिससेंही अश्व घोडे गर्दभ खच्चरां उत्पन्न भए, तिस यज्ञसें गोयां बकरीयां भेडें उत्पन्न भई; प्रजापतिके प्राणरूप देवते जब विराटूप पुरुषकों उत्पन्न करते भए, तब तिस पुरुषका मुख क्या होता भया? दोनों बाहु क्या होते भए ? ऊरु क्या होते भए ? पग क्या होते भए ? (उत्तर) ब्राह्मणत्व जातिविशिष्टपुरुष मुखसे उत्पन्न हुए, क्षत्रियत्वजातिविशिष्ट पुरुष थाहोंसें उत्पन्न भए, ऊरु-साथलोंसें वैश्य, और पगोंसें शूद्र उत्पन्न भए. For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy