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________________ Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सप्तमस्तम्भः। इत्यादि जो श्रुति है, सो अवांतर प्रलयके स्वरूपकथनमें है; इहां तौ महाप्रलयके स्वरूपका कथन है, इसवास्ते निरुपयोगी है. ॥१॥ __ मृत्यु भीनही था, अमरणपणा भी नही था, 'तर्हि तस्मिन् प्रतिहारसमये' तिस प्रतिहारसमयमें रात्रीदिनका(प्रकेतः)प्रज्ञान भी नही था,तिनके हेतुभूत सूर्यचंद्रमाके अभावसें;(आनीदवातं) एक शुद्ध ब्रह्मही था, (स्वधया) मायाकरके विभागरहित था, तस्मात् पूर्वोक्त मायासहित ब्रह्मसें विना, अन्य कोइ भी वस्तुभूत भूतकार्यरूप नही था. यह वर्तमान जगत् भी नहीं था. ॥ २॥ (तमसागृहमग्रे) सृष्टिसे पहिले प्रलयदशामें भूतभौतिक सर्व जगत् (तमसा गूढम्) जैसें रात्रिसंबंधि तमः सर्वपदार्थोंकों आवरण करता है, तैसें आत्मतत्त्वके आवारक होनेसें माया अपरनाम भावरूप अज्ञान इहां तमः कहते हैं, तिस तमःकरके (निगूढं-संवृत) नाम ढांपा हुआ था; कारणभूत मायाकरके यद्यपि जगत् था, तो भी (अप्रकेतम्-अप्रज्ञायमानम्) प्रतीत नही था, ( सलिलम् ) पाणीकीतरें; जैसे पाणी और दूध अविभागापन्न है, ऐसें माया और ब्रह्म अविभागापन्न थे (तुच्छेन ) तुच्छ कल्पनाकरके सत् असत्से विलक्षण होनेसें भावरूप अज्ञानकरके ढांपा हुआ था, ( एकम् ) एकीभूत कारणरूप तमःकरके अविभागताको प्राप्त हुआ भी, सो कार्यरूप (तपसः) स्रष्टव्यपर्यालोचनरूपके (महिना) माहात्म्यकरके उत्पन्न भया.॥३॥ ननु उक्तरीतिसें जेकर ईश्वरका विचारणाही जगतकी उत्पत्तिविषे कारण है तो, सो विचारही किस निमित्तसें है? सोही दिखाते हैं. 'कामस्तदने इत्यादि'-इस विकारवाली सृष्टिके पहिले परमेश्वरके मनमें इच्छा उत्पन्न होती भइ कि, मैं सृष्टि करूं; ईश्वरको इच्छा किस हेतुसें भइ? सो कहे हैं, ‘मनसःइति' अंतःकरणसंबंधी वासना शेषकरके, सर्व प्राणियोंके अंतःकरणमें तैसा (रेतः) होनहार प्रपंचका बीजभूत पहिले अतीतकल्पमें जीवोंने जो करा था पुण्यात्मक कर्म, यतः जिसकारणसें स्मृष्टिके समयतक वे कर्मफल परिपक्वफल देनेके सन्मुख होते भए, तिसहेतुसे सर्वसाक्षी फलप्रदाता ईश्वरके मनमें सृष्टि करणेकी इच्छा उत्पन्न भइ तिस इच्छाके हुए सृजनेयोग्य विचारके तदपीछे सर्वजगतकों For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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