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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir षष्ठस्तम्भः । વર્ आपही ब्रह्मा होता भया, अन्य जगे वेद में ब्रह्माको अज कहा है, यह परस्परविरुद्ध है. तिस अंडेमें ब्रह्माजीने ब्रह्माके एक वर्षतक वास करा, अंडेमेंही रहा, यह कथन मनुकी टीकामें है. ब्रह्माके एक वर्षके मनुष्योंके ३१,१०,४०,००,००,००० वर्ष होवे हैं. तथाहि . ॥ १ एक वर्ष देवताका, ३६० वर्ष मनुष्यके । देवताके १२००० वर्षका एक युग देवताका । जिसमें मनुष्यके चतुर्युग - वर्ष - ४३,२०,००० । देवताके २००० युगका एक ब्रह्माका अहोरात्र - ८,६४,००,००,००० मनुष्यवर्ष । ३६० दिनका एक वर्ष, जिसमें मनुष्यके वर्ष - ३१,१०,४०,००,००,०००| इतने वर्षातक ब्रह्माजी तिस अंडेमें रहे. इतने वर्षतक अंडेमें रहनेका क्या कारण था ? क्या ब्रह्माजी तिस अंडे से निकलनेका रस्ता मार्ग ढूंढते रहे ? किंवा बौंदल गए ? कुछ सूज नही पडती थी ? किंवा तिस अंडेके मापनेमें इतने वर्ष लग गए ? किंवा अब मैं क्या करूं ऐसी चिंतामें इतने वर्ष व्यतीत हो गए? किंवा उत्पत्तिके दुःखसें इतने वर्षतक विश्राम करा ? किंवा जो वेदमें लिखा है, ब्रह्माजीने तप करा अर्थात् इतने वर्षोंतक सृष्टि रचनेकी तजवीज करते रहे? इन सर्व पक्षोंके माननेमें दूषण आते हैं. क्योंकि, सर्वशक्तिमान् सर्वज्ञ निराबाध परमेश्वरमें पर्वोक्त कोइ पक्षभी सिद्ध नही हो सकता है, इसवास्ते परमेश्वर ब्रह्माका अंडेमें रहना अज्ञोंकी कल्पनामात्र है. फेर लिखा है, ब्रह्माजीने ध्यानसें तिस अंडेके दो भाग करे, यह भी असत्य है. क्योंकि, ध्यान तो वस्तुके स्वरूपका बोधक हैं, ज्ञानांश होनेसें; इसवास्ते ज्ञानसें अंडेके दो टुकडे नही हो सकते हैं. तिन दो टु कडोंसें एक टुकडेका स्वर्गलोक, और हेठले दूसरे खंडसें भूमि रचता हुआ, इन दोनोंके बीच में आकाश दिशां और दिशांके अंतराल और पाणीका स्थान समुद्र रचता हुआ, यह कथन युक्तिविरुद्ध तो हैही, परंतु ऋग्वेदसैंभी विरुद्ध है; क्योंकि, ऋग्वेद में प्रजापतिके शिरसें स्वर्ग, पगोंसे भूमि, कानसें दिशा, और नाभिसें आकाश, उत्पन्न हुए लिखा है. चतुर्दश (१४) श्लोकसें लेकर ३१ श्लोकपर्यंत मनुजीने जो सृष्टिक्रम लिखा For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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