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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir १८७ षष्ठस्तम्भः सिंहादि दो है दांतकी पंक्ति हेठोपरि जिनके तिनकों रचता भया. ॥३९॥ कृमी, कीट, पतंग, यूका, माकड, मक्षिका, दंश, मशक, स्थावर वृक्षलतादिभेद भिन्न विविधप्रकारके रचता भया. ॥ ४० ॥ इन मरीचि आदिकोंने यह सर्व स्थावर जंगम सृजन करा, (यथाकर्म) जिसजीवके जैसें कर्म थे तिस अनुसार देव मनुष्य तिर्यगादिमें उत्पन्न करे, मेरी आज्ञासें, तप योगसे बडा तप करके सर्व ऐश्वर्य तपके अधीन है, यह दिखलाया.॥४१॥ मनु० अ० १॥ [समीक्षा ] वेदोंका कथन जो सृष्टिविषयक है, सो पाठकगणोंके वाचनार्थे संक्षेपसे प्रायः श्रुतियांसहित लिखेंगे, इहां मनुस्मृतिके कथनका किंचित् स्वरूप लिखते हैं, क्योंकि मनुस्मृतिभी वेदतुल्य, वा वेदोंसेंभी अधिक मानी जाती है; उपनिषद जो वेदका सार कहनेमें आता है तिनकी मूलश्रुतिमें मनुकी प्रशंसा लिखी है. मनुस्मृतिके प्रथम अध्यायके ५-६-७ श्लोकोंमें जो सृष्टिसंबंधि कथन है, सो प्रायः ऋग्वेदकी प्रलयादिके समानहीं है, इसवास्ते आठमे श्लोकसें विचार करते हैं. सो परमात्मा नानाविध प्रजा रचनेकी इच्छावंत हुआथका ध्यानसे आपो जायन्तां' ऐसें ध्यानमात्रसे पहिला पाणीही रचता भया, पाणी सृजनेसे पहिलां ब्रह्म अव्याकृत था, अव्याकृत शब्दकरके पंचभूत ५, पंच बुद्धींद्रिय ५, पंच कर्मेंद्रिय ५, प्राण १, मन १, कर्म १, अविद्या १, वासना १, ये सर्व सूक्ष्मरूपकरके शक्तिरूपकरके ब्रह्मकेसाथ रहे, तिसका नाम अव्याकृत है. ॥ इति मनुस्मृतिटीकायां ॥ इस पूर्वोक्त कथनसें ता, सांख्यमतवालोंकी मानी प्रकृति सिद्ध होती है, और मनुने सृष्टिका क्रमभी महदहंकारादिक्रमसें कहनेसें प्रायः सांख्यमतकी प्रक्रियाही अंगीकार करी मालुम होती है; इस्से सांख्यशास्त्र मनुसे पहिले सिद्ध होता है. जब सूक्ष्मरूपसें प्रकृति, ब्रह्मसें भेदाभेदरूपसें प्रलयदशामें थी, तब तो अद्वैतमत निर्मूल हुआ, और ब्रह्मके साथ माया, वा, प्रकृति भेदाभेदरूपसें माननी यह युक्तिविरुद्ध है. क्योंकि, जेकर भेद है तो कथं अभेद ? और जेकर अभेद है तो, कथं भेद ? यह दोनो पक्ष एक अधि For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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