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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir १८४ तत्त्वनिर्णयप्रासादलिनीको लोक शरीर ऐसा कहते हैं, छहोंके आश्रयणसें शरीर ऐसे निर्वचनसे पूर्वोक्त उत्पत्तिकमही दृढ करा. ॥ १७ ॥ सो ब्रह्म शब्दादिपंचतन्मात्रात्माकरके अवस्थित महाभूत जे है, आकाशादिक (आविशंति) तिनसे उत्पन्न होता है, कर्मोकरकेसहित स्वकार्योकरके तहां आकाशका अवकाशदानकर्म, वायुका व्यूहनं विन्यासरूप, तेजका पाक, पाणीका पिंडीकरणरूप, पृथिवीका धारणकरणा, अहंकारात्मकरके अवस्थित ब्रह्म मनअहंकारसे उत्पन्न होता है, अवयवोंकरके अपने कार्योंकरके शुभाशुभ संकल्प सुखदुःखादिरूपकरके सूक्ष्म बाहिरइंद्रियोंके अगोचर होनेसें सर्वभूतोंका करा सर्वोत्पत्तिनिमित्त मनोजन्य शुभाशुभ कर्मोंसें उत्पन्न होनेसें जगत्को (अव्यय) अविनाशी है ॥ १८॥ तिन पूर्वोक्त प्रकृतियोंको महत् अहंकार तन्मात्रांको, सप्त संख्याको, पुरुषसें अपणेको उत्पन्न होनेसें तदृत्तिग्राह्य होनेसें 'पुरुषाणां महौजसां' स्वकार्य संपादन करनेसे वीर्यवंतोंको सूक्ष्म जे मूर्तिमात्र शरीरसंपादक भाग है तिनसें यह जगत् नश्वर होता है, अनश्वरसें जो कार्य है, सो विनाशी है, स्वकारणमें लय होता है, और कारण तो कार्यकी अपेक्षा थिर है, परमकारण तो ब्रह्म नित्य उपासना करनेयोग्य है, यह दिखाते हुए यह अनुवाद है.॥१९॥तिन भूतोंको आकाशादिक्रमकरके उत्पत्तिक्रम है,शब्दादिगुणवत्ता कहेंगे तहांआदिके(आकाशादिके)गुण शब्दादिक है वाय्वादि परस्पर प्राप्त होते हैं, यही वात स्पष्ट करते है, योयइति इनके बीचमेसें जो जितनोंकरके पूर्ण है, सो यावतिथ कहिए हैं, 'ससद्वितीयादिः' दूसरा दो गुणवाला, तीसरा तीन गुणवाला, ऐसें मनुआदिकोंने कहा है. इस कथनसें यह कहा, आकाशका शब्दगुण, वायुका शब्दप्पर्श, तेजका शब्दस्पर्शरूप, अप्का शब्दस्पर्शरूपरस, भूमिका शब्दस्पर्शरूपरसगंध.॥२०॥ सो परमात्मा हिरण्यगर्भरूपकरके अवस्थित हुआ सर्ववस्तुयोंके नाम, गोजातिका गो, अश्वजातिका अश्व, कर्म, ब्राह्मणको पठन करना, क्षत्रियको प्रजा रक्षादि, पृथक् २ जिसके पूर्वकल्पमें जे जे नाम कर्म थे, वे सृष्टिकी आदिमें वेदशब्दोंसे जान कर निर्माण करता भया।।२१।।सो ब्रह्मा देवतायोंके गणसमूहको For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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