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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir १७४ तत्वनिर्णयप्रासाद. णोंसें हो रही है; और अमृत देहरहित ईश्वर सृष्टिका कर्ता किसीप्रमाणसेंभी सिद्ध नहीं होता है, इसवास्ते जगत् ईश्वरका रचा हुआ नही है ॥ १५ । १६ । १७ । १८ । १९ । २० । २१ । २२ । २३ ॥ पूर्वपक्षः--जेकर ईश्वर जगत्का रचनेवाला नही, तो फेर इस जगत्की व्यवस्था कैसें माननी चाहिए ? उत्तरपक्षः--नानाप्रकारकी योनियोंमें संप्रतिकालमें अपने २ कारणोंसें जैसें जीवोंकी उत्पत्ति हो रही है, और काल स्वभाव नियतिकर्म उद्यम जड चैतन्यमें प्रेरणशक्तिद्वारा जैसें इस जगत्की व्यवस्था हो रही है, ऐसेंही नित्यप्रवाहसें अनादि अनंत सिद्ध है. जे लोक स्थितिके विधिके जाननेवाले सर्वज्ञ है, तिनका ऐसा कथन है. और युक्तिप्रमाणसेंभी ऐसाही सिद्ध होवे है. ॥ २४॥ - ऐसे विचार करतां थकां सृष्टिकी रचनामें विशेष कथन है, वे परस्परविरुद्ध है, ते सर्व ऊपर लिख दीखाए है. जैसें हरिहर विरंचि प्रमुख सरागी देवोंमें परमेश्वरपणा प्रमाणयुक्तिसें सिद्ध नही होता है, तैसेंही प्रमाणयुक्तिसें जगत् ईश्वरकृत सिद्ध नहीं होता है, इसवास्ते ये सृष्टिरचनाके कथन युक्तिविहीन है; तिस्सेही बुद्धिमानोंकों त्यागने योग्य है.॥२५॥ मुक्तो वामुक्तो वास्ति तत्र मूर्तोंथ वा जगत्कर्ता ॥ सदसद्वापि करोति हि न युज्यते सर्वथाकरणम् ॥ २६ ॥ व्याख्या-जगत्का कर्त्ता ईश्वर मुक्तरूप वा अमुक्तरूप, मूर्त वा अमुर्त्त, सत्रूप वा असत्रूप, किसीतरेंभी सिद्ध नहीं होता है. ॥ २६ ॥ मक्तो न करोति जगन्न कर्मणा बध्यते विगतरागः ॥ रागादियुतः सतनुर्निबध्यते कर्मणावश्यम् ॥ २७॥ व्याख्या-जो मुक्तरूप है, सो तो जगत्कों नही रचेगा; प्रयोजनाभावात्. और जो वीतराग है, सो कर्मबंधनोसें नही बंधाता है; जो रागसंयुक्त शरीरसहित है, सो अवश्यमेव कर्मोकरके बंधाता है. ॥ २७ ॥ For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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