SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 277
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir पञ्चमस्तम्भः। १६७ अब ग्रंथकारने जो सामान्यसें पूर्वपक्षका खंडन लिखा है, सोही लिखतेहैं. तेषामेवाविनितिमसदृशं सृष्टिवादिनामिष्टम् ॥ एतद्युक्तिविरुद्ध यथातथा संप्रवक्ष्यामि ॥ १॥ सदसज्जगदुत्पत्तिः पूर्वस्मात्कारणात्स्वतो नास्ति ॥ असतोपिनास्ति क सदसयां संभवाभावात्२॥ यदसत्तस्योत्पत्तिस्त्रिष्वपि कालेषु निश्चितं नास्ति ॥ खरशंगमुदाहरणं तस्मात्स्वाभाविको लोकः ॥३॥ मूर्त्तामूर्त्त द्रव्यं सर्व न विनाशमेति नान्यत्वम्॥ यद्वेत्येतत्प्रायः पर्यायविनाशो जैनानाम् ॥४॥ काश्यपदक्षादीनांयदभिप्रायेण जायतेलोकः ॥ लोकाभावे तेषां अस्तित्वं संस्थितिः कुत्र॥५॥ व्याख्या-तिन पूर्वोक्त स्सृष्टिवादीयोंने इस जगत्का स्वरूप यथार्थ जानाहुआ नहीं है, और जो उनको सृष्टिका स्वरूप इष्ट है, सोभी एकसरीषा नही है, कोइ कैसें माने है,और कोइ किसीतरें माने है, सो सर्व प्रायःऊपर पूर्वपक्षमें लिख आए हैं; और जो इन पूर्वपक्षीयोंका मानना है, सोभी युक्तिप्रमाणसे विरुद्ध है, जैसे युक्तिप्रमाणसे विरुद्ध है, तैसें, मैं(श्रीहरिभद्रसूरि) सम्यक्प्रकारसें संक्षेपरूप कथन करूंगा. । जगत्की उत्पत्ति सत्कारणसें है वा असत्कारणसें है ? सत्कारणसेंभी नहीं है, और असत्कारणसेंभी नहीं है; और सृष्टिका कर्त्ता सत् असत् दोनों स्वरूपोंसें संभव नही हो सक्ता है, प्रमाणके अभावसें, सोही दिखाते हैं. । जेकर कारण सत्रूप है, तब तो कारण अपने स्वरूपको कदापि नही त्यागेगा, जब कारण अपने स्वरूपको नही त्यागेगा, तब कार्यरूप जगत् कैसे उत्पन्न होवेगा ? जेकर कारण अपने स्वरूपको त्यागके कार्य उत्पन्न करेगा, तब तो कारणका सत्स्वरूप नही रहेगा, तथा जगदुत्पत्तिसे पहिला जो जगत्का कारण था, सो नित्यस्वरूपवाला था, वा, अनित्यस्वरूपवाला था ? जेकर नित्य मानाजायगा, तब तो तीनोही कालमें जगत्की उत्पत्ति नही होवेगी, “अ प्रच्युतानुत्पन्नस्थिरैकरूपं नित्यं ॥" For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy