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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir पञ्चमस्तम्भः । १५१ तकी नीचे उतरते आना, ऐसे मनुजी के प्रति समझाकर मत्स्यजी जल में समाये और सो मनुजीभी, मत्स्यजीके कथनानुकूल जैसे २ जल उत्तरता गया तैसे २ उस जलके अनुकूलही पर्वतके नीचे २ उतरते आए, सोभी यह केवल पर्वतके ऊपरसे एक मनुकाही जो नीचे अवसर्पण अर्थात् अवतारण हुआ, सो एक मनुही उस सृष्टिमें सें बाकी बचे, और संपूर्ण प्रजाजलसमूहमें ही लय होगई; तब फिर मनुजीने प्रजाके रचनार्थ पर्यालोचन कर तपोनुष्ठान किया, इसीसे यह प्रजा, मानवी नामसें अबतक प्रसिद्ध है. इति ॥ और कितनेक ऐसा मानते हैं कि, यह तीनो लोक दक्ष प्रजापतिने करे हैं, अर्थात् तीनों दक्ष प्रजापतीने रचे हैं ॥ ४५ ॥ केचित्प्राहुर्मूर्तिस्त्रिधा गतिका हरिः शिवो ब्रह्मा ॥ शंभुजं जगतः कर्ता विष्णुः क्रिया ब्रह्मा ॥ ४६ ॥ व्याख्या कितनेक कहते हैंकि एकही परमेश्वरकी मूर्तिकी तीन गतियां हैं; हरि (विष्णु) १, शिव २, और ब्रह्मा ३, तिनमें शिव तो जगत्का कारणरूप है, कर्त्ता विष्णु है, और क्रिया ब्रह्मा है ॥ ४६ ॥ वैष्णवं केचिदिच्छंति केचित् कालकृतं जगत् ॥ ईश्वरप्रेरितं केचित् केचिद्रहाविनिर्मितम् ॥ ४७ ॥ व्याख्या कितनेक मानते हैं कि यह जगत् विष्णुमय, वा विष्णुका रवा हुआ है, और कितनेक कालकृत् मानते हैं और कितनेक कहते हैं कि, जो कुछ इस जगत् में हो रहा है, सो सर्व, ईश्वरकी प्रेरणासें ही हो रहा हैं और कितनेक कहते हैं, यह जगत् ब्रह्माने उत्पन्न करा है ॥ ४७ ॥ अव्यक्तप्रभवं सर्व विश्वमिच्छन्ति कापिलाः ॥ विज्ञप्तिमात्रं शून्यं च इतिशाक्यस्य निश्चयः ॥ ४८ ॥ व्याख्या - अव्यक्त ( प्रधान प्रकृति ) तिस अव्यक्तसें सर्व जगत् उत्पन्न होता है, ऐसे कपिलके मतके माननेवाले मानते हैं; और शाक्यमु For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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