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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir चतुर्थस्तम्भः । १९३५ वह छायानाम स्त्री संज्ञाके आगे खडी होकर बोली कि मैं क्या करूं? तब संज्ञाने कहा कि, हे वरानने ! तूं इस मेरे पति सूर्यको ही भज, और मेरी संतानको माताके समान अपना स्नेहकरके पालन कर; फिर तथास्तु अर्थात् ऐसाही करूंगी इस प्रकारसे अंगीकार करके वह छाया सूर्यको प्राप्त हुई. तब सूर्य भी उसको संज्ञाकेही समान जानकर बडे आदर भावसे उसकेसंग भोग करनेलगे, उसमें दूसरा मनु नाम पुत्र उत्पन्न हुआ, यह मनु पूर्वके मनुका, सवर्णी होकर सावर्णि नाम मनु विख्यात हुआ, फिर उसी छायामें सूर्य से शनैश्वर, तपती और विष्टि, यह संतान उत्पन्न हुई. इसके अनंतर वह छाया अपने पुत्र सावर्णिनाम मनुमें अधिक स्नेह करनेलगी, इस बातको प्रथम मनुने तो सहलिया, परंतु यम न सहसके, और महाक्रोधित होकर यमने उस छायाके पुत्र मनुको दाहिन पैरसे ताडन किया, तब छायाने यमको यह शाप दिया कि, यह तेरा पैर पीवयुक्त कीटोंसे भरे घाववाला होकर राधसे झिरे. फिर यम इसशापको न सहकर, अपने पिताके पास जाकर यह बोले कि, हे देव! माताने मुझे निरपराध शापित करदिया है, मैंने बालकपणेसे जरा पैरको उठादिया था, उस समय मनुने उसको निषेध भी किया था, परंतु उसने शाप देही दिया. हे विभो ! जो कि उसने हमको शापसे हत कर दिया है, इसहेतुसे वह विशेषकरके हमारी माता नहीं है, तब सूर्यने कहाकि हे महामते ! मैं क्या करूं ? मूर्खतासे अथवा कर्मके प्रभावसे कहो, किसको दुःख नहीं होता है ? शिवजीसेभी कर्मकी रेखा दूर नहीं होती है तो, अन्यजनोंकी क्या बात है ? हे पुत्र ! मैं तुझे मुरगा दूंगा, वह तेरे कृमियोंको भक्षण करके राधरुधिरकोभी खा कर दूर करदेगा. पिताके इसवचनको सुनकर यम दारुण तपस्या करनेलगे, अर्थात् गोकर्ण तीर्थपर जाके सर्व वस्तुओंको त्याग, फल, मूल, पत्र और वायु, इनका आहार करनेलगे, वहां दश करोड वर्षोंतक यमने महादेवजीका तप किया, तब शूलधारी शिवजी उसपर प्रसन्न होकर बोले कि, वर मांग. तब यमने संसारके किये हुए पापपुण्योंको जान लेनाही वर मांगा, इस For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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