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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir चतुर्थस्तम्भः । १२७ सर्व आगम अर्थात् आगम - वेदस्मृतिपुराणादि जैसा तिनका जीवनचरित्र प्रतिपादन करते हैं, तिनकों सुणके वा वांचके पूर्वोक्त देवोंके चारित्रों जाणकर तिन देवोंके स्वरूपगुणका निर्णय करिए तो, इसमें विचार करो कि, क्या किसी देवकी निंदा है ? ॥ २२ ॥ अब पूर्वोक्त देवोंका किंचित् स्वरूप ग्रंथकार दिखाते हैं. विष्णुः समुद्धतगदायुधरौद्रपाणिः शंभुर्ललन्नरशिरोस्थिकपालपाली ॥ अत्यन्तशान्त चरितातिशयस्तु वीरः कम्पूजयामउपशान्तमशान्तरूपम् ॥ २३ ॥ व्याख्या - उगरी हुइ गदारूप करके रौद्रपाणी, अर्थात् भयानक जिसका हाथ है, ऐसे स्वरूपवाला तो विष्णु है; और गलेमें मनुष्यके कपालोंकी मालावाला स्वरूप, महादेवका अर्थात् ऐसे स्वरूपवाला महादेव है; और अत्यंत शांतरूप चरितातिशयवाला वीर महावीर अर्हन है, यह स्वरूप पुराणादि शास्त्रों में और जैनमतके शास्त्रों में कथन करा है, तथा प्रत्यक्षमें भी पूर्वोक्त देवोंका स्वरूप, तिनकी मूर्तियांद्वारा सिद्ध होता है. अब हम वाचकवर्गकों पूछते हैं कि, तुम कहो, अब हम किसकों पूजें ? शांतरूपवालेकों कि अशांतरूपवालेकों ? ॥ २३ ॥ अब ग्रंथकार पूर्वोक्त देवोंके कृत्योंका किंचित् स्वरूप दिखाते हैं. दुर्योधनादिकुलनाशकरो बभूव विष्णुर्हरस्त्रिपुरनाशकरः किलासीत्॥ क्रौञ्च गुहोपि दृढशक्तिहरं चकार वीरस्तु केवल जगद्वितसर्वकारी २४ व्याख्या -- दुर्योधनादि अनेक राजायोंके कुलोंका नाश करनेवाला विष्णु, कृष्ण होता भया, यह कथन महाभारतादि ग्रंथोंमें प्रसिद्ध है; और हर महादेव, त्रिपुरनामक दैत्यका नाश करनेवाला निश्चयकरके होताभया, और कार्तिकेयभी, क्रौंचनामक राजाकी दृढशक्तिका हरन - नाश करने अर्थात् क्रौंचराजाकी दृढशक्तिका नाश करनेवाला हुआ है, परंतु श्रीमवीर तो केवल सर्वजगत् के हितके करनेवाले हुए हैं. अब कहो! किसकी हम पूजा करीए ? ॥ २४ ॥ For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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