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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir १०८ तत्वनिर्णयप्रासादअवलंबके, समाधिनाम शुक्लध्यानकों अवलंबके, (मोहजन्यां ) मोहजन्य ( करुणां-अपि) करुणाकोंभी (न) नही (युगाश्रितः-असि ) युगमें आश्रित हुआ है, अर्थात् मोहरूप करुणा करकेभी तूं युगयुगमें अवतार नही लेता है. जैसे गीतामें लिखा है “उपकाराय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ॥ धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि यूगेयुगे ॥ १॥" तथाबौद्धमतेपि "ज्ञानिनो धर्मतीर्थस्य कर्तारः परमं पदम्॥ गत्वा गच्छंति भूयोपि भवन्तीनिकारतः ॥ १॥" अर्थः-अच्छे जनोंके उपकारवास्ते, और पापी दैत्योंके नाश करने वास्ते, और धर्मके संस्थापन करनेवास्ते, हे अर्जुन ! मैं युगयुगमें अवतार लेता हूं. | १ | हमारे धर्मतीर्थका कर्ता बुद्ध भगवान् , परमपदकों प्राप्त होकेभी, अपने प्रवर्त्तमान करे धर्मकी वृद्धिकों देखके जगद्वासीयोंकी करी पूजाके लेनेवास्ते, और अपने शासनके अनादरसें अर्थात् अपने प्रवर्ताये शासनकी पीडा दूर करनेवास्ते, इहां आता है. ऐसी मोहजन्य करुणाकों हे ईश! तूं युगयुगमें आश्रित नहीं हुआ है. || १८ ॥ अथ स्तुतिकार भगवंतमें जैसा कल्याणकारी उपदेश रहा है, तैसा अन्यमत के देवोंमें नहीं है, यह कथन करते हैं-- जगन्ति भिन्दन्तु सृजन्तु वा पुनर्यथा तथा वापतयःप्रवादिनाम्। त्वदेकनिष्ठे भगवन् भवक्षयक्षमोपदेशे तु परंतपस्विनः॥ १९॥ व्याख्याः-(प्रवादिनाम्- पतयः) प्रवादीयोंके पति, अर्थात् परमतके प्रवर्तक देवते हरिहरादिक, (यथा तथा वा ) जैसे तैसें प्रवादीयोंकी कल्पना समान वे देवते (जगंति) जगतांको ( भिंदंतु) भेदन करो-प्रलय करो-सूक्ष्म रूपकरके अपने में लीन करो; (वा पुनः) अथवा ( सृजंतु) सृष्टियांकों सृजन (उत्पन्न) करो, यह कर्त्तव्य तिनके कहनेमूजब होवो, वे देवते करो, परंतु हे भगवन् ! (त्वदेकनिष्ठे ) एक तेरेहीमें रहे हुए (भवक्षयक्षमोपदेशेतु) संसारके क्षय करनेमें समर्थ ऐसे धर्मोपदेशके देने में तो, वे परवादीयोंके पति (स्वामी) देवते, (परं ) परमउत्कृष्ट (तपस्विनः) For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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