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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ९८ तत्वनिर्णयप्रासादवाले हैं, और जे आगम हिंसादि, आदि शब्दसें मृषा, अदत्तादान, मैथुनादि पाप कर्म करनेके उपदेशक हैं, वे आगम प्रमाण नहीं है. ॥१०॥ अथ भगवंतप्रणीत आगमके प्रमाण होने में हेतु कहते हैं.. हितोपदेशात्सकलज्ञक्लप्तेर्मुमुक्षुसत्साधुपरिग्रहाच्च ॥ पूर्वापरार्थेप्यविरोधसिद्धेस्त्वदागमा एव सतां प्रमाणम् ॥११॥ व्याख्या हे भगवन् जिनेंद्र ! (त्वदागमाएव ) तेरे कथन करे हुए द्वादशांगरूप आगमही (सतां ) सत्पुरुषांकों (प्रमाणम् ) प्रमाण है, किस हेतुसे (हितोपदेशात् ) एकांत हितकारी उपदेशके होनेसें और (सकल ज्ञकृतेः) सर्वज्ञके कथन करे रचे हुए होनेसें, (च) और (मुमुक्षुसत्साधुपरिग्रहात् ) मोक्षकी इच्छावाले सत्साधुयोंके ग्रहण करनेसें, अर्थात् आचार्य उपाध्याय साधु जिनके प्रवर्तक होनेसें, (अपि) तथा (पूर्वापरार्थे ) पूर्वापर कथन करे अर्थों में (अविरोधसिद्धेः) अविरोधकी सिद्धिसें ॥११॥ अथ भगवतके सत्योपदेशकों परवादी किसी प्रकारसेंभी निराकरण नही कर सक्ते हैं यह कथन करते हैं. क्षिप्येत वान्यैः सदृशी क्रियेत वा तवाडिपीठे लुठनं सुरेशितः॥ इदं यथावस्थितवस्तुदेशनं परैः कथंकारमपाकरिष्यते ॥ १२॥ व्याख्या हे जिनेंद्र ! (तव) तेरे (अडिपीठे) चरण कमलोंमें, जो (सुरेशितुः) इंद्रका (लुठनं ) लुठना-लोटना था, चरणमें चौसठ इंद्रादि देवते सेवा करते थे, इत्यादि जो तेरे आगममें कथन है, तिसकों (अन्यैः) परवादीबौद्धादि, (क्षिप्येत ) क्षेपन करें-खंडन करें; यथा जिनेंद्रके चरण कमलोंमें इंद्रादि देवते सेवा करते थे, यह कथन सत्य नही है, जिनेंद्र और इंद्रादि देवतायोंके परोक्ष होनेसें (वा) अथवा (सदृशी क्रियेत) सदृश करें, जैसें श्री वर्द्धमान जिनके चरणों में इंद्रादि लोटते थे-चरण कमलकी सेवा करते थे, ऐसेही श्री बुद्ध भगवान् शाक्यसिंह गौतमकेभी चरणोंमें इंद्रादि सेवा करते थे, ऐसें कहें; परंतु (इदं ) यह जो (यथावस्थितवस्तुदेशनं ) यथार्थ वस्तुके स्वरूपका कथन तेरे शासनमें है, तिसकों (परैः) परवादी (कथंकारम् ) किस प्रकार करके (अपाकरिष्यते) For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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