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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir तृतीयस्तम्भः । ९३ करना व्यर्थ सिद्ध होवेगा; इस वास्ते ईश्वरकी यही दयालुता है, जो भव्य जनोंकों उपदेश द्वारा मोक्षमार्ग प्राप्त करना सो तो आप निरंतर जगत् में करही रहे हैं, ऐसे आप परम कृपालुको छोडके ( अन्यैः ) अन्य परवादीयोंनें ( त्वदन्यः ) तुमारेसें अन्यको ( शरणं ) शरणभूत (किम् ) किसवास्ते (आश्रितः) आश्रित किया है-माना है ? कैसा है वो अन्य ? (स्वमांसदानेन वृथा कृपालुः) अपना मांस देने करके जो वृथा कृपालु है; आत्माका घात, और परकों अपना मांस देके तृप्त करना, यह वृथाही कृपालुका लक्षण है, क्योंकि, ऐसी कृपालुतासें परजीव का कल्याण नही होता है, असद्धर्मोपदेशरूप होनेसें. बुद्धका यह कहना है कि, मेरे सन्मुख कोइ व्याघ्र सिंहादिक भूखसें मरता होवे तो, मैं अपना मांस देके तिसकी क्षुधा निवारण करूं, मैं ऐसा दयालु हूं. और क्षेमेंद्र कविविरचित बोधिसत्वअवदान कल्पलता में बोधिसत्वने पूर्व जन्मांतर में अपना शरीर सिंहको भक्षण करवाया था ऐसा कथन है, इस वास्ते बुद्ध अपने आपकों स्वमांसके देनेखें कृपालु मानता था, परंतु यह कृपालुता व्यर्थ है. ॥ ६॥ आथा आचार्य असत्पक्षपातीयोंका स्वरूप कहते हैं. स्वयं कुमार्गे लपतां नु नाम प्रलम्भमन्यानपि लम्भयन्ति ॥ सुमार्गगं तद्विदमादिशन्तमसूयान्धा अवमन्वते च ॥ ७ ॥ व्याख्या - ( असूययांधाः ) ईर्षा करका जे पुरुष अंधे है वे (स्वयं) आपतो ( कुमार्ग) कुमार्गकों (लपतां) कथन करो ! प्रबल मिथ्यात्व मोहके उदय होनेसें जैसें मद्यप पुरुष मदके नशेमें, जो चाहो सो असमंजस वचन बोलो तैसेंही मिथ्यात्वरूप धतूरेके नशेसे ईर्षांध पुरुष कुमार्ग, अर्थात् अश्वमेध, गोमेध, नरमेध, अजामेध, अंत्येष्टि, अनुस्तरणि, मधुपर्क, मांस आदिसें श्राद्ध करना, ब्राह्मणोंके वास्ते शिकार मारके लाना, परमेश्वरकों जीव वध करके बलिका देना, मोक्ष प्राप्तकों फेर जगत् में जन्म लेना, तीर्थोंमें स्नान करनेसें सर्व पापोंसें छूटना, काशी में मरणेसें मोक्षका मानना, अरूपी, अशरीरी, सर्वव्यापक, मुखादि अवयव रहित, ऐसें परमेश्वरकों वेदादि शास्त्रोंका उपदेष्टा मानना, अग्नि में For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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