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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir द्वितीयस्तम्भः। तूं ही व्यक्त (प्रगट) पुरुषोंमें उत्तम है. पक्षमें पुरुषोत्तम, कृष्ण, सो तो, सर्वत्र कपटवशसे यथार्थ पुरुषोत्तम नही है ॥ २६॥ और अज्ञ लोकोंने, जो ब्रह्मा, विष्णु, महादेवके नामोंको कलंकित करे है, और तिनके असभ्यतारूप चरित लिखे हैं, वे देव यथार्थ ब्रह्मा विष्णु, महादेव नहीं माने जाते हैं. क्योंकि उन देवोंका चरित, और स्वरूप, जो परमतवालोंने लिखा है, तिस चरित स्वरूपसेही सिद्ध होता है कि वे यथार्थ ब्रह्मा, विष्णु, महादेव नही थे. तथाचाह भर्तृहरिः-॥ शंभुस्वयंभुहरयो हरिणेक्षणानां येनाक्रियंत सततं गृहकंपदासाः॥ वाचामगोचरचरित्रपवित्रिताय* तस्मै नमो भगवते मकरध्वजाय ॥४८॥ भावार्थ:-जिस कामदेवने, शंभु (महादेव ), स्वयंभु (ब्रह्मा ), और हरि (विष्णु), इन्होंकों, हरिणसमान, ईक्षण (नेत्र) है जिनोंके, ऐसी स्त्रियोंके निरंतर घरके कुंभदास, अर्थात् पानी भरनेवाले करे हैं. [ दूस री परतमें, गृहकर्मदासाः' ऐसा पाठ है. उसका अर्थ घरके काम करने वाले दास, अर्थात् नौकर.] वचनके अगोचर चरित्र उन्होंकरके पवित्र, ऐसा जो भगवान् मकरध्वज (कामदेव) तिसकेतांइ नमस्कार हो. तथा भोजराजाकी सभाके मुख्य पंडित धनपालजी कहते हैं. दिगवासा यदि तत्किमस्य धनुषा तच्चेत्कतं अस्मना भस्माथास्य किमड़ना यदि च सा कामं प्रति द्वेष्टि किम् ॥ इत्यन्योन्यविरुद्धचेष्टितमहो पश्यन्निजस्वामिनो भृङ्गी सान्द्रसिरावनपरुषं धत्तेस्थिशेषं वपः॥ १ ॥ * प्रत्यंतरे 'वाचामगोचरचरित्रविचित्रिताय' अर्थ:-वाणीयोंके अगोचर अर्थात् वचनोंसें न कहे जावे. ऐसें विचित्र, अद्भुत, आश्चर्यकारी, चरित्र है जिसके, ऐसा जो कामदेव भगवान् तिसकेतांद नमस्कार हो, + प्रत्यंतरे ' कुसुमायुधाय' यह कामदेवकाही पर्यायनाम है. For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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