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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ६० तत्वनिर्णयप्रासाद शरीरपर धारण किये, ग्रीष्मऋतुमें पंचाग्नि तपी, वर्षाऋतु में जलमें निवास किया, कभी वनके फलोंका आहार किया, कभी निराहार रही, और पृथ्वीपर शयन किया, ऐसे प्रकारोंसे तपस्या करती भई. इसपीछे अंधक दैत्यका पुत्र उस पार्वतीको जानकर अपने पिताके बधका स्मरण कर बदला लेनेका उपाय करता भया, वह अंधकका पुत्र आडि नाम दैत्य रणमें देवताओंको जीतकर शिवजीके समीप आता भया. वहां आकर द्वारपर खडे हुए वीरभद्र को देख प्रथम ब्रह्माजीके दिये हुए वरका चितवन कर वहां बहुतसा तप करता भया. तब तपसे प्रसन्न हुए ब्रह्माजी उस आडि दैत्यके समीप आकर बोले कि, हे दानव ! इस तपकरके तू किस वातकी इच्छा करता है, यह सुनकर वह दैत्य बोला कि, मैं कभी न मरूं यह वर मांगता हूं. ब्रह्माजीने कहा, हे दानव ! मृत्युके विना तो कोई भी नही है, इस हेतुसे तू किसी कारणसे अपनी मृत्युको मांग ले, यह सुनकर वह दानव ब्रह्माजी से बोला कि, जब मेरा रूप बदल जावे, तभी मेरी मृत्यु हो, अन्यथा अमर ही रहूँ. यह सुन ब्रह्माजी प्रसन्न होकर बोले कि, जब तेरा दूसरा रूप बदलेगा उसी समय तेरी मृत्यु होगी. यह वर पाकर वह दैत्य अपनी आत्माको अमर मानता भया. इसके अनंतर वीरभद्रकी दृष्टि चुराने के निमित्त सर्पका रूप धारण कर वीरभद्र के विना देखे शिवजीके पास जाता भया; फिर वह मूढचित्तवाला दैत्य शिवजी के छलने के निमित्त पार्वतीजीका रूप बना लेता भया, मायासे मनोहर, संपूर्ण अंगों की शोभासे युक्त ऐसे रूपको बनाकर मुखमें बडे २ तीक्ष्ण वज्र के समान दांतोंको लगाके अपनी बुद्धिके मोहसे शिवजीके मारनेका उद्योग करता भया. पार्वतीका रूप धारण कर सुंदर अंगों में आभूषण और कृत्रिम वस्त्रोंको पहर शिवजीके समीप जाता भया. तब उस महाअसुरको देखकर शिवजी प्रसन्न होकर पार्वती समझकर यह वचन बोले कि, हे पार्वती ! तेरा स्वभाव अच्छा है ? कुछ छल तो नही है ? क्या तू मेरा मनोरथ जानकर मेरेपास आई है ? तेरे विरहसे मैंने सब जगत् शून्यमान रक्खा है, अब तू मेरे पास आगई यह तैंने बहुत अच्छा किया. ऐसे कहा हुआ वह दैत्य हंसकर शिवजीके प्रभावको For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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