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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir १० तत्वनिर्णयप्रासादकार्य विष्णुः क्रिया ब्रह्मा कारणं तु महेश्वरः ॥ कार्यकारणसंपन्ना एकमूर्तिः कथं भवेत् ॥२२॥ भाषा-विष्णु तो कार्यरूप है, ब्रह्मा क्रियारूप है, और महेश्वर कारणरूप है; तब कार्य कारण प्राप्त हुआंकी एकमूर्ति कैसे होवे? क्योंकि, कारण, कार्य, क्रिया ये तीनो एकरूप नही हो सक्ते हैं ॥ २२ ॥ प्रजापतिसुतो ब्रह्मा माता पद्मावती स्मृता॥ अभिजिजन्मनक्षत्रमेकमूर्तिः कथं भवेत् ॥ २३॥ भाषा-ब्रह्माके पिताका नाम प्रजापति, प्रजापति ऋषिका पुत्र ब्रह्मा हुआ; ब्रह्माकी माताका नाम पद्मावती, ब्रह्माका जन्म अभिजित् नक्षत्रमें हुआ था. अभिजित् नक्षत्रका अधिष्ठाता देवताका नाम ब्रह्मा है, इसवास्ते पुत्रका नाम ब्रह्मा रक्खा || २३ ॥ वसुदेवसुतो विष्णुर्माता च देवकी स्मृता । रोहिणी जन्मनक्षत्रमेकमूर्तिः कथं भवेत्॥ २४ ॥ पेढालस्य सुतो रुद्रो माता च सत्यकी स्मृता ॥ मूलं च जन्मनक्षत्रमेकमूर्तिः कथं भवेत् ॥ २५॥ भाषा-वसुदेवका पुत्र विष्णु हुआ,और माता देवकी कही, और रोहिणी नक्षत्रमें जन्म हुआ, पेढालका पुत्र रुद्र हुआ, और माताका नाम सत्यकी, दूसरा नाम सुज्येष्ठा, और मूलनक्षत्रमें जन्म हुआ, इस पृथक् २ हेतुसें इन तीनोंकी एकमूर्ति कैसे होवे ॥ २४ ॥२६॥ रक्तवर्णो भवेद्ब्रह्मा श्वेतवर्णो महेश्वरः॥ कृष्णवर्णो भवेद्विष्णुरेकमूर्तिः कथं भवेत् ॥ २६ ॥ अक्षसूत्री भवेद्ब्रह्मा द्वितीयः शूलधारकः ॥ तृतीयः शंखचक्रांक एकमूर्तिः कथं भवेत् ॥ २७॥ चतुर्मुखो भवेद्ब्रह्मा त्रिनेत्रोऽयं महेश्वरः ॥ चतुर्भुजो भवेद्विष्णुरेकमूर्तिः कथं भवेत् ॥ २८ ॥ For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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