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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ૨૮ तत्वनिर्णयप्रासाद कहते हैं. “त्वं शंकरोऽसि भुवनत्रयशंकरत्वात्” इतिवचनात् । भगवंतके दोही आसन हैं, कायोत्सर्गासन वा पर्यंकासन पुनः भगवंतकी मुद्रा, स्त्री और चक्र त्रिशूलादि, आदिशब्दर्से जपमाला, यज्ञोपवीत, कमंडलु इत्यादिसे रहित होती है. क्योंकि, इनके रखनेसें भगवान् कामी, क्रोधी, अज्ञानी, अशुची इत्यादि दूषणोंवाला सिद्ध होता है. यदुक्तं " स्त्रीसंगः काममाचष्टे द्वेषं चायुधसंग्रहः ॥ व्यामोहं चाक्षसूत्रादिरशौचं च कमण्डलुः” इति ॥ १७ ॥ साकारोऽपि नाकारो मूर्त्तामूर्त्तस्तथैव च ॥ परमात्मा च बाह्यात्मा अन्तरात्मा तथैव च ॥ १६ ॥ भाषा - देहसंयुक्त तेरमे चौदमे गुणस्थान में जबतांइ औदारिक, तैजस, कार्मण शरीरोंके साथ संबंधवाला है, तबतांइ ईश्वर साकारस्वरूपवाला है; और जब सिद्धपदकों प्राप्त होता है, तब निराकारस्वरूप कहा जाता है. ईश्वर साकारावस्था में मूर्तिमान् है, और सिद्धपदकी अपेक्षा अमूर्त्त - स्वरूप है, परमात्मा है, बाह्यात्मस्वरूपवाला है, और अंतरात्मास्वरूपवाला भी है. कथंचित् भगवंतमें पूर्वोक्त सर्वस्वरूप घंटे हैं, सोही स्याद्वादशैलीकरके दिखाते हैं ॥ १६ ॥ दर्शनज्ञानयोगेन परमात्मायमव्ययः ॥ परा क्षान्तिरहिंसा च परमात्मा स उच्यते ॥ १७ ॥ भाषा - दर्शनज्ञानके योगकरके अर्थात् ज्ञानदर्शनस्वरूपकरके जो परमात्मास्वरूपकों प्राप्त हुआ है. । ' नाणदंसणलक्खणं' इतिवचनात् । और जो अव्ययरूपवाला है. तद्भावाव्ययं नित्यम् ” इतिवचनात् । और उत्कृष्ट क्षमा और अहिंसा इनकरके जो संयुक्त है, सो परमात्मा कहा जाताहै ॥ १७ ॥ 66 परमात्मासिद्धिसंप्राप्तौ बाह्यात्मा तु भवान्तरे || अन्तरात्मा भवेद्देह इत्येषस्त्रिविधः शिवः ॥ १८ ॥ भाषा- जब सिद्धिमुक्तिकों प्राप्त होवे तब परमात्मा जानना, अर्थात् तेरमें चौदमें गुणस्थानसें सिद्विपदप्राप्तितक परमात्मा कहा जाता है. और For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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