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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir तत्वनिर्णयप्रासाद. १४, आदर्श लिपि १५, माहेश्वर लिपि १६, दामा लिपी १७, और वोलिदि लिपि १८, ये अठारह प्रकारकी लिपि श्री ऋषभदेवजीने ब्राह्मी नामा निज पुत्रीकों सिखलाईं, इस वास्ते ब्राह्मी लिपि अथवा ब्राह्मी संस्कृतादि भेदवाली वाणी, भाषा, तिसकों आश्रित्य श्री ऋषभदेवजीने, या दिखलाई अक्षर लिखनेकी प्रक्रिया, सा ब्राह्मी लिपि, तिसके अठारह भेद. पीछेसें देशांतर कालांतर पुरुषांतरके भेद पाकर ये अठारह प्रकारकी लिपि अनेक रूपसें प्रचलित हो गई; परं मूल सर्व लिपियोंका यह अठारह भेदवाली ब्राह्मी लिपीही है. इस वास्ते जे कोइ कहते हैं, कि प्राचीन आर्य लोक लिखनाही नहीं जानते थे, ये कहना प्रमाणिक नही है. और लिखना तो जानते थे, परंतु कल्पसूत्रकी भाष्यवृत्तिमें लिखा है, कि जो साधु सूत्र लिखे वा पास रक्वे तो तिसकों प्रायश्चित्त लेना पडता है; क्योंकि, पुस्तक लिखेगा तब स्याही, पट्टी, बंधन, दोरे, वगैरे रखने, रस्तेमें बोझ उठाना, पुस्तकके पत्रोंमें अनेक सूक्ष्म जीव उत्पन्न होते हैं, इत्यादि अनेक दूषण होनेसें लिखनेका निषेध है. और श्री देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमणजीने जो पुस्तक लिखे, सो अन्यगतिके न होनेसें, और सर्व ज्ञान व्यवच्छेद होनेके भयसें, और प्रवचनकी भक्तिसें लिखे हैं. क्योंकि, जैनमतमें मैथुन वर्जी किसी वस्तुका एकांत निषेध नहीं है. इस वास्ते अपवाद पदावलंबके सूत्र सर्व लिखे. और अब भी वोही रीति प्रचलित है. और वर्तमान कालमें जे जैनमतके पुस्तक विद्यमान हैं, उनोंसें जैनमतके आचार्य सत्यवादी और भवभीरु भी सिद्ध होते हैं. क्योंकि, अपने मतके पुस्तकोंका जेसा वृत्तांत वीता था, तैसाही लिख गए. और अपनी कल्पनासें कोइ पाठ उलट पुलट नही करो; सो महानिशीथादि शास्त्रोंमें प्रगट देखने में आता है. १ इन अठारह प्रकारकी लिपिका स्वरूप किसी जगे भी नही देखा, इस वास्ते नहीं लिखा है, ऐसें टीकाकार लिखते है. २ जैसे वैदिक मतवालोंने वेद, उपनिषद, महाभारत, भागवत, पुराणादिमें करा है, जो पाठ आगे लिखे जावेंगे. For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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