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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८२ अज्ञात सूरिविरचिता गुरु भइ भावदोसो, न तु किंतू पमायदोसोऽयं । तो अमदिणे वालअपत्यगदिट्ठतओ भणिओ ॥९८॥ मा वहसु वच्छ ! गव्वं, अहयं पंडिओ इहं वणे । आसवन्नुमयाओ, तरतमजोगेण महविभवा ॥ ९९ ॥ (५) इअ अच्छेrयचरिओ, काraat arts faris | सीमंधर जिणपासे, इओ निगोए हरी सुणिउ ॥१००॥ पुच्छ भयवं भरहे वि, को वि एए जिए बिआरेह ? | पहु भणs कालगज्जो, जहाऽरिहं तं विआरेइ ॥ १०१ ॥ तो हरि बंभणरूवं, काउमिहानम्म पुच्छर निगोए । ' गोला य असंखिज्जा' इचाइ गुरु वि साहे ||१०२ || च्छिमोऽणसणं । भण मह किचिअ आउं तो • नि अयरे किं चूणे, तस्स www.kobatirth.org १ त्रुटितमिह पत्रमर्द्धम् । ................ ॥१०३॥ आउ गुरु भगइ | वं ॥ १०४ ॥ I निरser विहु काले नाणं विप्फुर होउ तुह नाह || १०५ ।। जेणुन्नई तर पत्रयणस्स, संघस्स कारणे विहिआ । ॥१०६॥ इय थोऊण सुरिंदो, सुमरितो सुरि-निम्मलगुणोहं । आका ॥१०७॥ तो कालगरी विहु, जाणित्ता नियआउ - परिमाणं । संलेहणं विहे [ अणसणविहिणा दिवं पत्ता ] ||१०८|| [कालिका]चार्यकथा समाप्ता ॥ For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020798
Book TitleCollection of Kalka Story Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherSarabhai Manilal Nawab
Publication Year1949
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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