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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीकल्याणतिलकगणिविरचिता सिरिसाय(ल)वाय(ह)णेणं, संघेण य कालिगारिया भणि[या] । छट्ठीए कायव्वा, पजूसणा न उण पंचमी(मि)ए ॥४२॥ .--अन्य दिन राजा श्रीसालवाहन अनइ संधि कालिकाचार्य पूछ्या । हम कह्यु; भगवम् ! पर्युषणा छठि दिनि करउ न पुन पांचमइ ते स्यइ ॥१२॥ पंचमीए इंदमहो, च्छव्यवट्ट [?] ग(ग)तव(ब्व)मेव सव्वेण । तेण न जिणाण पूया, भवस(विस्स)इ तत्थ तो कुणह ॥४३॥ --भगवन् ! पांचमइ इंद्र महोच्छव छइ । सर्वलोक तहां जासइ । तेह भणी जिन श्रीवीतरागनी पूजा स्नात्रादिक नही हुइ । तेणि कारण लगी छट्टिइं करउ मया करीनइ ॥४३॥ सूरी पभणइ तत्तो, चलइ कया वि य सुमेरुगिरिचूला । न हु पंचमीदिणाओ, पजो(ज्जो सवणा न(य ?) अइकमे(मइ) ॥४४॥ -तिवारइ आचार्य कहइ; राजन् कदाचित् मेरुनी चूलिका कल्पांत वाय हती चालइ पणि ए पर्युषणा भादवा सुदि पांचम थकी न चालइ । पांचमि अतिक्रमइ लांघइ नही ॥४४॥ भवउ चउत्थीए तो, तिथुन्नय(इ)कारणं च सूरीहि नाउ(ऊ)ण पव्वराय, कयं चउत्थीदिणे परमं ॥४५॥ -तउ स्वामी पर्वराज चउथइ हुवइ । ए वात सांभली तीथिन्नतर जाणी सुगुरे ए पर्व चउत्थीनइ दिनि कीधा ॥१५॥ भणियं च जओ मुत्ते, आरेणावि कप्पइ ण परओ [?] । अह अन्नया स सीसा, सच्छंदा कालभावाओ ॥४६॥ -जेह भणी सूत्रमाहे कहुं अर्वाग् भणी एउ रहउ कल्पइ पणि परहुं न कल्पइ । अन्यदा भाचार्य प्रस्तावि स्वशिष्य स्वच्छंदवर्ति चालता देखी कालना दोष लगी स्युं कीधउ । ते कहइ ॥४६॥ सिज्जायरगिहवइणो, कहिउ(ऊ)णं सूरिणो गया तुरियं । सीसाणुसीसबहुमुयसागरचंदस्स य समीवे ॥४७॥ -पछइ सिजातर श्रावकनइ कही आपणपइ शिष्यानुशिष्य सागरचंद्राचार्य समीपि आव्या। ते सूता सूता मूक्या ॥४७॥ बहु मनिउ(ऊ)ण तेणं, विजा(ज्जा)मयगविएण भो वुढ(इद) ! । पुच्छइ(सु ?) विसमपयं जं, तुम्हाणं वहए किंचि ॥४८॥ -पणि तिणइ विद्यामदगर्वित हुंतह मान-सन्मान न दीधउ । न उलिख्या । न जाण्या आवीनइ कहइ भो वृद्ध ! कांइ विषम पद तम्हारइ हृदय हुवइ ते पूछउ । हुं सविहुंना संदेह भांजउ । पछह गुरे आचार्य सगर्व जाणी पूछइ ॥४८॥ तओ विवाओ जाओ, अत्थी नत्थि ति धम्मविसओ य । तावागया य सीसा, गाओ सो कालगायरिओ ॥४९॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020798
Book TitleCollection of Kalka Story Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherSarabhai Manilal Nawab
Publication Year1949
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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