SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीकल्याणतिलकगणिविरचिता -विकल करइ कलावंतनह, पवित्रनइ हसइ, पंडतनइ विडंबइ, धीरवंत पुरुषनइ अधीर करइ, क्षण एकमाहि मकरध्वज कंदर्प देवता ।। इम कामातुर ते गर्दभिल्ल जाणी कालिकाचार्य श्रीसंघ संयुक्ता तहं पासि जई तेहनह प्रतिबोधवा निमित्ति अनेक वचन कहा ॥१३॥ सा ते वचन अत्थि सुइ सयसहसं(सं), नरिंददुहियाण रूववंतीणं । ताहि चेव [न] तिचो, ता एयाए कहं तित्ती ? ॥१४॥ —ाजन् ! ताहरइ अंतेउरं हंसगतिगामणी जनमनमोहनी रूपई देवांगना नाम दउ रती एहवी राजानी पुत्रीना सत सहस्र हुतइ जउ तुझनइ तृप्ति नथी। तउ ए मस्तकमुंड श्वेतवस्त्रधारणी कुरूपलि गनीनइ ग्रहणइ किम तृप्ति हुसइ ! किन्तु पापनी वृद्धि हुसइ लोकमाहि कुजस, परलोकमाहि नरकफलि । तेह भणी सुख वांछइ तउ ए महासती सुसील मेल्हि ॥१४॥ सो कामग(ग्ग)हगहिओ, वयणामयसंचिओ [वि] न हु भिन्नो तेल्लकुडे जलबिंदु ब्व, तओवायं कुणइ सूरी ॥१५॥ --ते राजा कामरूपी अजगर तणइ करी विकल हुओ। आचार्यना वचनामृत जलइ साँचिओ पणि भेदणउ नही । सीपरि चोपडइ घडइ पाणीना बिंदुनी परि तिवार पछइ आचार्य उपाय कीधउ । स्यउ ते उपाय ! ॥१५॥ काउ(ऊ)ण गहिलरूवं, तओ विरूवं विभासय(ए) वयणं । एसो राया तो कि, नत्थि हु एयस(स्स) रजु(ज्जु)सिरी ॥१६॥ -पछह आचार्य गहिलानु रूप करी अनेक विरूप बोलवा लागउ । स्या ते विरूप वचन ! । ए राज्य तउ स्यु ! ए रानो समूल उन्मूलीसि । हुं भिक्षाचर तउ सूं ? एहनइ सर्वथा राजलक्ष्मी नथी ॥१६॥ एवं पयंपिऊणं, तह सगकूले तओ गओ सूरी । सत्य य जे सामंता, सुसाहिणो देसमासाए ॥१७॥ -इम अनेकविध वचन कही तिहां हुंती आचार्य सगकूलनइ विषय गया । तिहां जे सामंत प्रवर्तइ ते देशभाषाइ साखी राजाइ कहाई ॥१७॥ निवो साहणुसाही [य] ति(त)त्थ एगं मुसाहिणं । विज्जाविनाणमंतेह(हि), आवज्जिऊण ठिया तहिं ॥१८॥ -जे सामंत राजानउ जे नृप ते साखानुसाखी कहाई । तिहां एक साखी राजा विद्याविना(ज्ञा)न मंत्र तंत्रे करी आवर्जी मुनि शाखीश्वर तेहनइ पास रहिया ॥१८॥ दि(द)ट्टण य कण्हमुहं, पुच्छइ तं सूरिणो तओ सव्वं । साहइ रूदाएसं, सो नरवइणो जहावुत्तं ॥१९।। -अन्यदा प्रस्तावि ते कृष्णमुख देखी सूरि पूछड; " राजन् ! ए सी वात ! तिवारइ ते राजा आपणा राजानू घोर रौद्र आदेस जिम आवउ छइ । ते सर्व कहइ ॥१९॥ छुरियकचोलियसहिओ, लेहोऽज्ज समागओ य सो र(रु) ढो । मग्गइ सीसं मह तह, छन्नवइनिवाणमन्नेसि ॥२०॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020798
Book TitleCollection of Kalka Story Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherSarabhai Manilal Nawab
Publication Year1949
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy